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Wednesday, April 9, 2014

'चेहरे और चाल से बयान हो जाती है व्यक्ति की पर्सनेलिटी'

   
       आत्मविश्वासी कैसे बनें, यह हमारे कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे- हमारे माता-पिता का हमारे प्रति दृष्टिकोण, माता-पिता का अधिक सुरक्षात्मक दृष्टिकोण और अधिक अपेक्षा का होना। आत्मविश्वास की कमी का मतलब दक्षता में कमी नहीं है। यह माता-पिता द्वारा, मित्रों, सम्बंधियों या समाज के द्वारा अवास्तविक अपेक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का नतीजा हो सकता है। हमें अपने अच्छे आत्मविश्वासी होने के एहसास को दूसरे के अनुमोदन के सहारे की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। यदि हम इस प्रकार करते हैं तो हमारा आत्मविश्वास अन्य लोगों के मूल्यांकन पर निर्भर करता है कि उनको कैसा लगता है या वे कैसा महसूस करते हैं।

           हमें निरंतर अपना आत्मविश्वास बनाना चाहिए, सुझाव का अनुकरण करना हमें मदद कर सकता है। कोई भी अपने भौतिक प्रस्तुतिकरण में सचेत नहीं रहता है। जब तक आप अपने आप में अच्छा नहीं दिखते हों या अच्छा अनुभव नहीं करते हों तो यही अपने आप की अनुभूति दूसरे को भी होती है। पोशाक का ठीक होना तथा अपने प्रस्तुतिकरण पर ध्यान देना सबसे अच्छा होता है।

           आपको अपने कपड़े पर बहुत सम्पति खर्च नहीं करना है, लेकिन जो भी आप पहनते हों, वह आपके जीवन के पड़ाव के अनुसार उचित होना चाहिए। मैंने खुद यह महसूस किया है कि मैं स्नान करने के बाद तथा साफ-सुथरे कपड़े पहनने पर सुंदर लगता हूं। इसका ध्यान रखिए कि हमेशा अच्छा पोशाक पहना जाए। आप एक कुली, टिकट कलेक्टर, रेलवे स्टेशन पर टिकट निरीक्षक या पोस्टमैन या पुलिसकर्मी को उसके पोशाक से पहचान सकते हैं। शेक्सपीयर ने सही कहा है- "पोशाक आदमी को हमेशा प्रस्तुत करता है।"

           आप किसी व्यक्ति का आकलन उसके हाव-भाव और चाल से कर सकते हैं। अपने हाव-भाव पर ध्यान दीजिए और हमेशा कोशिश कीजिए कि आप उत्साहित, महत्वपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण दिखें। जिस तरह एक आदमी अपने आप को ढोता है, वह अपने आप में अपनी कहानी बताता है। अच्छे हाव-भाव के अभ्यास के द्वारा आप आप में अधिक महत्वपूर्ण और विश्वास महसूस करेंगे।

           अच्छा हाव-भाव मुख्यत: सीधी तरह बैठना और उठना है। अपनी ठोढ़ी को सीधा रखना है और दूसरे से आंख को मिलाए रखना है। किसी व्यक्ति के हाव-भाव, चाल को जांचकर आप यह निर्णय दे सकते हैं कि वह थका हुआ है, उत्साहित है, शक्तिशाली है या उद्देश्यपूर्ण है। आत्मविश्वासी व्यक्ति जल्दी-जल्दी और उत्साहित होकर चलते हैं। वे महसूस करते हैं कि उन्हें किसी जगह जाना है और महत्वपूर्ण कार्य करना है।
आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए सकारात्मक सोच का प्रयोग कीजिए। यह सब ध्यानपूर्वक सकारात्मक सोच के अलावा कुछ और नहीं है। आत्मविश्वास को बनाने के लिए धारणा का प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली तरीका है। यह बहुत साधारण लगता है, शुरुआत में यह थोड़ी असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन याद रखना कि जो आप करने की कोशिश कर रहे हैं, वह आपके दिमाग की नई उत्कंठा है।

Tuesday, April 8, 2014

क्या आप अपनी याददाश्त बढ़ाना चाहते हैं


           यहोवा परमेश्वर ने इंसान के दिमाग में याद रखने की बेजोड़ काबिलीयत डाली है। हमारा दिमाग एक ऐसे भंडार की तरह बनाया गया है जिसके अंदर से आप जब चाहे, जितना चाहे ज्ञान का अनमोल खज़ाना निकाल सकते हैं, तो भी यह कभी खत्म नहीं होगा। हमारे दिमाग की रचना दिखाती है कि परमेश्वर ने इंसानों को हमेशा ज़िंदा रहने के लिए बनाया था।
           लेकिन आप शायद सोचें कि मैं इतना कुछ सुनता और सीखता हूँ, मगर आधी से ज़्यादा बातें दिमाग से गुल हो जाती हैं और ऐन वक्त  पर याद ही नहीं आतीं। तो फिर, अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

       दिलचस्पी लीजिए

            दिलचस्पी लेना, अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिए एक ज़रूरी कदम है। अगर हम हमेशा अपने आँख-कान खुले रखने की आदत डालते हैं, साथ ही लोगों और आस-पास हो रही घटनाओं में दिलचस्पी लेते हैं, तो हमारा दिमाग तेज़ी से सोचने लगता है। इस आदत की वजह से हम उन बातों को भी शौक से पढ़ेंगे और सुनेंगे, जो हमारी ज़िंदगी के लिए अनमोल साबित हो सकती हैं।

             अकसर देखा गया है कि लोगों को दूसरों के नाम याद नहीं रहते। लेकिन हम मसीहियों के लिए, लोग बहुत मायने रखते हैं, फिर चाहे वे हमारे मसीही भाई-बहन हों, या वे जिन्हें हम गवाही देते हैं, या वे जिनके साथ हमारा रोज़ का लेना-देना है। तो फिर हमें जिनका नाम याद होना चाहिए, उनका नाम याद रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं? गौर कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने एक कलीसिया को लिखी अपनी पत्री में 26 भाई-बहनों के नाम लिखे थे। उसे सिर्फ उनके नाम याद नहीं थे बल्कि उसने उनकी कुछ खास बातों का भी ज़िक्र किया। इससे पता चलता है कि पौलुस को उनमें सच्ची दिलचस्पी थी। (रोमि. 16:3-16) आज यहोवा के साक्षियों के सफरी ओवरसियर, हर हफ्ते अलग-अलग कलीसियाओं के ढेरों लोगों से मिलते हैं, फिर भी उनमें से कुछ सफरी ओवरसियरों को भाई-बहनों के नाम बहुत अच्छी तरह याद हो जाते हैं। कैसे? दरअसल जब वे किसी से पहली बार मिलते हैं, तब वे कई दफा उसका नाम लेकर उससे बात करते हैं। वे लोगों के चेहरे से उनका नाम याद रखने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, वे दूसरे मौकों पर अलग-अलग भाई-बहनों के संग वक्तब बिताते हैं जैसे कि प्रचार के दौरान या उनके यहाँ खाने पर। अगली बार जब आपकी मुलाकात किसी से होगी, तब क्या आपको उसका नाम याद रहेगा? सबसे पहले, ऐसी खास बात सोचने की कोशिश कीजिए जिसकी वजह से आप उसका नाम याद रख सकें; फिर ऊपर बताए गए कुछ सुझावों को आज़माएँ।

              नाम याद रखने के अलावा, जो कुछ आप पढ़ते हैं उसे भी याद रखना ज़रूरी है। इस मामले में अपनी याददाश्त तेज़ करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? इसके दो तरीके हैं: पहला, मन लगाकर पढ़िए और दूसरा, जो कुछ आप पढ़ते हैं, उसे समझने की कोशिश कीजिए। जब आप कुछ पढ़ते हैं, तो आपको उसमें गहरी दिलचस्पी लेनी चाहिए, तभी आप उस पर पूरा ध्यान दे पाएँगे। लेकिन पढ़ते वक्त  अगर आपका दिमाग कहीं और है, तो आपको कुछ भी याद नहीं रहेगा। नयी जानकारी का पहले सीखी बातों के साथ मेल बिठाने से या उनके बीच का फर्क समझने से आप जो पढ़ रहे हैं, उसे और भी अच्छी तरह समझ पाएँगे। खुद से सवाल कीजिए: ‘मैं कब और कैसे इस जानकारी को अपनी ज़िंदगी में अमल में ला सकता हूँ? इस जानकारी का इस्तेमाल करके मैं दूसरों की कैसे मदद कर सकता हूँ?’ इसके अलावा, अपनी समझ बढ़ाने के लिए अलग-अलग शब्दों के बजाय वाक्य के पूरे-पूरे हिस्सों को पढ़ना सीखिए। इस तरह आप जो पढ़ रहे हैं, उसका मतलब आपको ज़्यादा आसानी से समझ आएगा और आप यह भी जान पाएँगे कि इसमें किन खास विचारों के बारे में चर्चा की जा रही है। इससे याद रखना भी आसान हो जाएगा।

   सीखी हुई बातों को दोहराने के लिए वक्त निकालिए

            शिक्षा क्षेत्र के महारथियों ने ज़ोर देकर कहा है कि याददाश्त बढ़ाने में, सीखी हुई बातों को दोहराना, हमेशा से एक कारगर तरीका रहा है। एक अध्ययन किया गया था जिसमें कॉलेज के एक प्रोफेसर ने परीक्षण करके दिखाया कि पढ़ने के फौरन बाद, सीखी हुई बातों को दोहराने के लिए सिर्फ एक मिनट बिताने से आप पहले के मुकाबले दो गुना ज़्यादा जानकारी याद रख पाते हैं। इसलिए पढ़ाई के फौरन बाद या उसके बीच में, मुख्य मुद्दों को मन-ही-मन दोहराइए ताकि ये आपके दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाएँ। अगर आप कोई नयी बात सीखते हैं, तो मन में विचार कीजिए कि आप इसे अपने शब्दों में दूसरों को किस तरह समझाएँगे। जब कोई विचार पढ़ने के फौरन बाद आप उसे मन में दोहराते हैं, तो यह आपको काफी समय तक याद रहता है।
यह तरकीब आज़माने के अगले कुछ दिनों के दौरान, कोशिश कीजिए कि आपने जो कुछ सीखा है, उस पर किसी-न-किसी के साथ चर्चा करें। आप चाहें तो घर के किसी सदस्य, कलीसिया के किसी भाई-बहन, अपने साथी कर्मचारी, स्कूल के दोस्त, पड़ोसी या प्रचार करते वक्तई किसी से इन बातों पर चर्चा कर सकते हैं। आपने जो खास सच्चाइयाँ सीखी हैं, सिर्फ उन्हीं के बारे में मत बताइए बल्कि यह भी बताइए कि इनको मानने के लिए शास्त्र में क्या तर्क दिया गया है। ऐसा करना आपके लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे आप ज़रूरी बातों को याद रख पाएँगे और इससे दूसरों को भी लाभ होगा।

    अहम बातों पर मनन कीजिए

           आप जो कुछ पढ़ते हैं, उसे दोहराने और दूसरों के साथ चर्चा करने के अलावा, आपको सीखी हुई ज़रूरी बातों पर मनन भी करना चाहिए। आप पाएँगे कि ऐसा करना और भी फायदेमंद है। बाइबल लेखक, आसाप और दाऊद ने ऐसा ही किया था। आसाप ने कहा: “मैं याह के कामों को स्मरण करूँगा, निश्चय, मैं प्राचीनकाल के तेरे अद्भुत कार्यों को स्मरण करूंगा। जो कुछ तू ने किया है मैं उस पर ध्यान करूंगा। और तेरे कार्यों पर मनन करूंगा।” (भज. 77:11,12, NHT) और दाऊद ने लिखा: “रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूंगा” और “मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, मैं तेरे सब अद्भुत कामों पर ध्यान करता हूं।” (भज. 63:6; 143:5) क्या आप भी ऐसा करते हैं?

           जब आप यहोवा के कामों, उसके गुणों और उसकी मरज़ी क्या है, इस बारे में गहराई से सोचेंगे, तब आप न सिर्फ सच्चाई के ज्ञान को दिमागी तौर पर याद रखेंगे बल्कि आपको इससे भी बढ़कर फायदे होंगे। अगर आप मनन करने की ऐसी आदत डाल लेंगे, तो जो बातें बेहद ज़रूरी हैं वे आपके दिल में उतर जाएँगी। ये आपके अंदर के इंसान को ढालकर खरा बनाएँगी। इस तरह मनन करने के बाद आपको जो याद रह जाएगा, वह दिखाएगा कि आपके अंदर का इंसान किस तरह सोचता है।—भज. 119:16.

    परमेश्वर की आत्मा की भूमिका

            यहोवा के महाकर्मों और यीशु की कही बातों को याद करने के लिए हमें एक और मदद हासिल है। यीशु ने अपनी मौत से पहले की रात को शिष्यों को इस मदद के बारे में बताते हुए कहा: “ये बातें मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कहीं। परन्तु सहायक अर्थात्‌ पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।” (यूह. 14:25,26) उन शिष्यों में मत्ती और यूहन्ना भी मौजूद थे। क्या पवित्र आत्मा वाकई उनके लिए एक सहायक साबित हुई? जी हाँ! इस घटना के करीब आठ साल बाद, मत्ती ने पहली ऐसी किताब लिखकर पूरी की जिसमें मसीह के जीवन की ब्योरेवार जानकारी दी गयी थी। इसके अलावा, इस किताब में उसने पहाड़ी उपदेश जैसी अनमोल यादें लिखीं। इतना ही नहीं, उसने मसीह की उपस्थिति और जगत के अंत के चिन्ह का ब्योरा लिखा। फिर, यीशु की मौत के पैंसठ साल बाद प्रेरित यूहन्ना ने सुसमाचार की अपनी किताब लिखी। यीशु ने अपनी जान कुरबान करने से पहले की रात, अपने प्रेरितों के साथ जो-जो बातें कीं, वे सब यूहन्ना ने अपनी किताब में दर्ज़ कीं। यह सच है कि मत्ती और यूहन्ना ने यीशु के साथ रहते हुए जो कुछ सुना और देखा था, उसकी यादें उनके मन में ताज़ा थीं। मगर जब उन्होंने सुसमाचार की किताबें लिखीं, तो पवित्र आत्मा ने उनकी मदद की और उन्हें वह हर ज़रूरी बात याद दिलायी जो यहोवा अपने वचन में लिखवाना चाहता था। इस तरह पवित्र आत्मा ने एक अहम भूमिका निभाई।

             क्या आज भी पवित्र आत्मा परमेश्वर के लोगों के लिए सहायक का काम कर रही है? बेशक! हालाँकि पवित्र आत्मा हमारे मन में वे बातें नहीं डाल देती जो हमने कभी सीखीं ही नहीं। मगर फिर भी, यह एक सहायक बनकर हमें वे अहम बातें याद दिलाती है जो हमने पहले कभी पढ़ी थीं। (लूका 11:13; 1 यूह. 5:14) फिर ज़रूरत की घड़ी में, यह हमारी याददाश्त पर असर डालती है और हमारा दिमाग तेज़ी से दौड़ने लगता है और हम ‘उन बातों को, जो पवित्र भविष्यद्वक्ताओं ने पहिले से कही हैं और प्रभु, और उद्धारकर्त्ता की आज्ञा को स्मरण’ कर पाते हैं।—2 पत. 3:1,2.

   ‘तुम भूल मत जाना’

            यहोवा ने इस्राएलियों को बार-बार यह कहकर आगाह किया था: ‘तुम भूल मत जाना।’ यहोवा उनसे यह उम्मीद नहीं कर रहा था कि उन्हें हर छोटी-से-छोटी बात याद रहे। मगर उन्हें अपने ही कामों में इतना डूब नहीं जाना चाहिए था कि उनके पास यहोवा के महान कामों के बारे में सोचने की ज़रा भी फुरसत न हो। उन्हें अपने दिलो-दिमाग में ये घटनाएँ ताज़ा रखनी थीं कि यहोवा ने उनको छुटकारा दिलाने की खातिर क्या-क्या किया था। कैसे उसने अपना स्वर्गदूत भेजकर मिस्र के सभी पहिलौठों को मार डाला। कैसे उसने लाल समुद्र को चीरकर बीच में से रास्ता निकाल दिया और फिर उसकी जलधाराओं को लौटाकर फिरौन और उसकी सेना को डुबा दिया। इस्राएलियों को यह भी याद रखना था कि परमेश्वर ने उन्हें सीनै पर्वत के पास अपनी व्यवस्था दी और वह उन्हें किस तरह वीराने से वादा किए गए देश में ले आया था। इन्हें ना भूलने का मतलब था कि इस्राएलियों की रोज़मर्रा ज़िंदगी पर इन घटनाओं का हमेशा-हमेशा के लिए ज़बरदस्त असर होना चाहिए था।—व्यव. 4:9,10; 8:10-18; निर्ग. 12:24-27; भज. 136:15.

            आज हमें भी एहतियात बरतने की ज़रूरत है कि कहीं हम भी भुल्लकड़ ना हो जाएँ। ज़िंदगी के तनाव का सामना करते-करते हमें यहोवा को नहीं भूल जाना चाहिए। हमें यह बात हमेशा मन में रखनी चाहिए कि वह किस तरह का परमेश्वर है और उसने अपने बेटे को एक तोहफे की तरह देकर हमारे लिए कितना प्यार दिखाया है जिससे हमारे पापों की छुड़ौती मिली और हम हमेशा के लिए सिद्ध जीवन पा सकते हैं। (भज. 103:2,8; 106:7,13; यूह. 3:16; रोमि. 6:23) अगर हम रोज़ बाइबल पढ़ेंगे, कलीसिया की सभाओं और प्रचार में लगातार हिस्सा लेंगे, तो इन अनमोल सच्चाइयों की यादें हमारे मन में हमेशा बनी रहेंगी।

             आपको ज़िंदगी में छोटे या बड़े कैसे भी फैसले क्यों ना करने पड़ें, ऐसे में ये अनमोल सच्चाइयाँ याद कीजिए और उनको ध्यान में रखकर फैसला कीजिए। इन्हें भूल मत जाइए। सही राह चुनने के लिए यहोवा से मदद माँगिए। किसी बात को बस इंसान की नज़र से देखने या अपने असिद्ध मन की आवाज़ सुनकर कोई फैसला करने के बजाय खुद से ये सवाल पूछिए: ‘इस मामले में मुझे परमेश्वर के वचन की किस सलाह या सिद्धांत को ध्यान में रखकर फैसला करना चाहिए?’ (नीति. 3:5-7; 28:26) आप ऐसी बातें हरगिज़ याद नहीं कर सकते जो आपने पहले कभी पढ़ी या सुनी न हों। लेकिन, जब यहोवा के बारे में आपका ज्ञान और उसके लिए आपका प्रेम बढ़ेगा, तो आपके ज्ञान का वह भंडार भी बढ़ेगा, जिसमें से पवित्र आत्मा आपको ज़रूरी बातें याद करने में मदद कर सकती है। और यहोवा के लिए प्यार आपको उस जानकारी के मुताबिक काम करने के लिए उकसाएगा।

   पढ़ी हुई बातों को याद रखने की काबिलीयत कैसे बढ़ाएँ

     • पाठ का एक भाग पढ़ने के बाद, खुद से पूछिए: ‘अभी-अभी मैंने जो पढ़ा, उसका मुख्य मुद्दा क्या है?’ अगर आपको याद नहीं आता, तो उस भाग पर दोबारा नज़र दौड़ाइए और मुख्य मुद्दे को ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए

     • पूरा अध्याय या लेख पढ़ने के बाद, अपनी याददाश्त को परखिए। सभी मुख्य मुद्दों को याद कीजिए। अगर आपको ये मुद्दे फौरन याद नहीं आते, तो लेख पर दोबारा नज़र डालिए और जो आपने पढ़ा है, उस पर फिर से गौर कीजिए

क्या हम अपनी स्मरण शक्ति बढ़ा सकते हैं ?


     
      हम में से अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि हमारी स्मृति स्थिर और अपरिवर्तनीय है। लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ तकनीकों के जरिए आपकी याददाश्त और मस्तिष्क के काम करने की क्षमता में जबर्दस्त इजाफा हो सकता है।

           आमतौर पर लोग औसतन अपने मस्तिष्क का 12 प्रतिशत ही इस्तेमाल करते हैं। फिर तो आप कह सकते हैं कि यह दुनिया बेवकूफ है। लोग अपने दिमाग का 12 प्रतिशत ही क्यों इस्तेमाल कर पा रहे हैं ? इसकी वजह है। दरअसल, मस्तिष्क के दांयें और बायें हिस्से के बीच आवश्यक सामंजस्य स्थापित करने का कोई सुनियोजित तरीका उनके पास नहीं है। अगर आप उन दोनों हिस्सों को सही तरीके से जोड़ेंगे नहीं, तब तक पूरा मस्तिष्क काम नहीं करेगा। न्यूरॉन नाम की एक चीज होती है, ये न्यूरॉन लगातार एक खास दिशा में काम कर रहे हैं। आप इन्हें जोड़ सकते हैं और अलग भी कर सकते हैं। 24 घंटे के भीतर हम इंसान के सोचने, इस दुनिया में चीजों को महसूस करने और समझने के तरीके को पूरी तरह से बदल सकते हैं।

           मस्तिष्क के दांयें और बांयें हिस्सों के बीच सामंजस्य बढ़ाने का एक सबसे अच्छा तरीका यह है कि अगर कोई इंसान अपने स्थूल शरीर को शांत और स्थिर रख सकता है, तो शरीर की निश्चलता की इस स्थिति में मस्तिष्क एक बड़े पैमाने पर जुड़ जाता है।


        24 घंटे के भीतर हम इंसान के सोचने, इस दुनिया में चीजों कोमहसूस करने और समझने के तरीके को पूरी तरह से बदल सकते हैं।

           प्राचीन काल में अपने देश में मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की विस्तृत और परिष्कृत प्रणाली थी। एक पूरा तरीका था कि मस्तिष्क को पूरी तीव्रता और गहराई के साथ कैसे जोड़ा जाए। वैज्ञानिक शोध भी इधर उधर घूमकर वापस हमारी प्राचीन प्रणाली और उन तरीकों पर ही आ जाते हैं, जो हमने मानवीय क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए हैं। अच्छी बात यह है कि उन्होंने भी यही माना है कि शरीर को स्थिर करके ही मस्तिष्क की शक्ति को सबसे अधिक बढ़ाया जा सकता है।

            1930 की बात है। दो मित्र बनारस गए। उन्होंने नदी में स्नान करने की सोची। आपस में वे बातचीत कर रहे थे और किसी व्यापार के मुद्दे पर समझौता करने की कोशिश में थे। सहमति इस बात पर बनी कि एक दोस्त दूसरे को व्यापार स्थापित करने के लिए 50 हजार रुपये देगा। वहीं के वहीं उन दोनों ने मौखिक तौर पर सहमति बना ली। कुछ साल बाद जिस दोस्त ने पैसे दिए थे, उसे पैसों की जरूरत पड़ी। उसने अपने पैसे मांगे, लेकिन कोई लिखित समझौता तो था नहीं कि उसने पैसे दिए हैं। ऐसे में पैसे मांगने पर दूसरे मित्र ने कहा, “तुमने मुझे कभी पैसे नहीं दिए। ऐसा कोई समझौता ही नहीं हुआ हम दोनों के बीच।“ पहले दोस्त ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने उससे सबूत मांगा, लेकिन उसके पास इस बात का कोई सबूत नहीं था कि उसने 50 हजार रुपये उधार दिए थे। इस न्यायाधीश  ने कहा, “ आपको सबूत तो देना होगा, नहीं तो इस मामले में अदालत कुछ नहीं कर पाएगी।”

            बस शांत और स्थिर बैठे रहिए। कुछ दिनों में आप देखेंगे कि चीजों को ग्रहण करने और याद करने की आपकी शक्ति में जबर्दस्त इजाफा हो रहा है।

             अचानक उसे याद आया कि जब वे दोनों नदी में नहाते हुए पैसे के लेनदेन का समझौता कर रहे थे तो एक ब्राह्मण उनके पास ही स्नान कर रहा था। उसे लगा कि हो सकता है उस ब्राह्मण ने उनके समझौते के बारे में कुछ सुना हो और वह उसके पक्ष में गवाही दे दे। वह उस ब्राह्मण को ढूंढने बनारस गया। उसे वह ब्राह्मण मिल तो गया लेकिन उसे यह जानकर बड़ी निराशा हुई कि वह ब्राह्मण अंग्रेजी नहीं जानता था और उस दिन वे दोनों मित्र अंग्रेजी में ही बात कर रहे थे। उसे लगा कि ब्राह्मण का कोई फायदा उसे नहीं मिल पाएगा। फिर भी उसने ब्राह्मण से बात की, “देखो, चार साल पहले हम दो मित्र स्नान कर रहे थे। आप भी वहीं थे। हमारे बीच एक समझौता हुआ था। आप उसके बारे में मेरे लिए गवाही दे दें।” ब्राह्मण ने कहा, “मैं अंग्रेजी तो नहीं जानता लेकिन मैं वह सब दोहरा अवश्य सकता हूं जो तुम लोग उस दिन बात कर रहे थे।” वह अंग्रेजी नहीं जानता था, लेकिन उसने वह सब कुछ दोहरा दिया जो उस दिन उसने सुना था। वह उन शब्दों का अर्थ नहीं जानता था, फिर भी सब कुछ याद करके उसने हूबहू वही शब्द अदालत के सामने दोहरा दिए, जो उन दोनों दोस्तों ने उस दिन बोले थे। नतीजा यह हुआ कि जिस दोस्त ने पैसे दिए थे, वह मुकदमा जीत गया।  

         कहने का अर्थ यह है कि अगर हम अपनी अंदरूनी परिस्थितियों को सही तरीके से संभाल लें तो हम अपनी स्मरण शक्ति को इतना ज्यादा बढ़ा सकते हैं। शुरुआत करने का सबसे आसान तरीका यही है कि स्थिर रहना सीखा जाए। अगर आप किसी जगह शांत और स्थिर होकर बैठना सीख सकते हैं तो यह इस दिशा में एक अच्छा कदम होगा। यह आप कक्षा में भी कर सकते हैं। आपके शिक्षक बात कर रहे हैं। ऐसे में आपको जरूरत नहीं है हिलने डुलने या भाव प्रदर्शन करने की। बस शांत और स्थिर बैठे रहिए। कुछ दिनों में आप देखेंगे कि चीजों को ग्रहण करने और याद करने की आपकी शक्ति में जबर्दस्त इजाफा हो रहा है। कुछ खास तरह के अभ्यास हैं, जिनके माध्यम से इस स्थिरता को आप अपने भीतर उतार सकते हैं।

हामारे मस्तिष्क में स्मरण शक्ति की क्या-क्या क्रिया विधि होति हैं।



        बहुत अधिक संख्या में ऐसे लोग हैं जो प्राय: अपनी कमजोर स्मरण क्षमता को लेकर चिंतित रहते हैं। जब वे किसी का पक्ष या सामने वाले व्यक्ति का नाम तक भूल जाते हैं तो उन्हें और भी बुरा लगता है। ऐसा उनके साथ भी होता है, जिनके पास पहले अच्छी स्मरण शक्ति थी। हमें याद रखना चाहिए कि स्मरण शक्ति एक बैंक की तरह है। यदि इसमें कुछ डालेंगे, तभी तो निकाल सकेंगे।
        हमारी यादें हमारे व्यक्तित्व का एक प्रमुख अंग हैं। हम क्या याद रखते हैं और क्या भूल जाते है यह सब बहुत सारी चीजों पर निर्भर करता है। भाषा, दृष्टि, श्रवण, प्रत्यक्षीकरण, अधिगम तथा ध्यान की तरह स्मरण भी मस्तिष्क की एक प्रमुख बौद्धिक क्षमता है। हमारे मस्तिष्क में जो कुछ भी अनुभव, सूचना और ज्ञान के रूप में संग्रहीत है वह सभी स्मरण के ही विविध रूपों में व्यवस्थित रहता है।
       हमारी स्मरण कैसे काम करती है या फिर किसी भी चीज को हम कैसे याद रख पाते हैं? स्मरण हमारे मस्तिष्क में किस प्रकार संग्रहीत होती है? हम किसी चीज को क्यों भूल जाते हैं और कुछ चीजे भुलाए नहीं भूलती। इन मूलभूत प्रश्नों ने मानव मन को सदा से ही आंदोलित किया है तथा इनके उत्तर देने के समय समय पर प्रयास भी किये गए हैं।


        स्मरण  की क्रियाविधि

    आधुनिक परिभाषा के अनुसार हमारी स्मरण एक सामूहिक प्रक्रम है जिसके तीन मुख्य चरण होते हैं।

  1)सूचनाओं को कूटबद्ध करना

        हमें अपने आसपास के वातावरण को महसूस करने के लिए पहले आवश्यक है कि वातावरणीय उद्दीपनों को उससे संबंधित ज्ञानेन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया जाए। उदाहरण के लिए किसी भी वस्तु को देखने के लिए हम उस पर से परावर्तित प्रकाश को नेत्रों द्वारा ग्रहण करते हैं। अब इस परावर्तित प्रकाश को नेत्र की रेटिना में उपस्थित संवेदी तंत्रिका कोशिकाएं (रॉड और कोन) क्षीण वैद्युतीय तरंगो में बदलती हैं। अब यह कहा जा सकता है कि रेटिना द्वारा वातावरण में उपस्थित प्रकाश उद्दीपन का कोडीकरण वैद्युतीय रूप में किया गया। अब यह हल्की वैद्युतीय तरंग मस्तिष्क के दृश्य क्षेत्र में जाती है और यहां इसकी व्याख्या की जाती है। इस व्याख्या के आधार पर हम अपने मन में सामने के दृश्य का एक प्रतिबिंब बनाते हैं। इस समूची प्रक्रिया को दृश्य प्रत्यक्षीकरण (visual perception) या देखना कहते हैं। कोडिंग के समय सूचनाएं मुख्यतः स्थान, समय तथा आवृत्ति के आधार पर कोड की जाती हैं।

  2)सूचनाओं का संग्रहण

       सूचनाओं को कोड करने के बाद उनके संग्रहण का स्थान आता है। यह संग्रहण संवेदी स्तर या अल्पकालीन स्मृति के स्तर या दीर्घकालीन स्मृति के स्तर पर हो सकता है। यहां यह उल्लेखनीय होगा कि हमारे मस्तिष्क में संग्रहण के समय सूचनाओं में थोड़ा परिवर्तन हो सकता है। मतलब कि सूचनाएं वहीं नहीं रहेंगी जैसी वे वास्तविक रूप में थीं। उनमें हम अपने पास से कुछ मिला सकते है या फिर उस सूचना के किसी भाग को निकाल भी सकते हैं। अगर आधी अधूरी सूचना है तो हम उसे अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर गढ़ भी सकते हैं। इस गुण के कारण स्मृति एक निर्माणात्मक प्रक्रिया होती है। स्मृति का अतिरिक्त स्तर पर वर्गीकरण स्मृति में सूचनाओं के संग्रहण के आधार पर किया जाता है।

3)स्मरण

      हमें कैसे पता चलता है कि हमारे पास किसी विशेष समय या स्थान की स्मृति है? तभी जब हम उसे स्मरण करते हैं। उदाहरण के लिए अगर पूछा जाए कि अपने बचपन के पांच शिक्षकों के नाम बताइए जिनकी शिक्षाओं ने आपके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डाला है तो हमें उत्तर देने में देर नहीं लगेगा। लेकिन अगर यह पूछें कि वर्ष 2000 से 2005 तक जैविकी या किसी भी क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों के नाम बताइए तो शायद हमें कुछ देर तक सोचना पड़ जाए। यह बात यहां स्पष्ट हो जाती है कि हम किन चीजों को याद रखते हैं और किन चीजों को भूल जाते हैं यह सब काफी कुछ हमारी अभिप्रेरणाओं, चेतन और अचेतन इच्छाओं इत्यादि पर निर्भर करता है। अतः स्मरण, संपूर्ण स्मृति का एक आवश्यक अंग है।

        यह मान कर चलें कि आपकी स्मरण शक्ति तीव्र है, स्वयं से सकारात्मक अपेक्षा रखें। यदि मानेंगे कि आपका दिमाग काम नहीं करता, याददाश्त हाथ से निकल गई है तो दिमाग भी यही मानने लगेगा। हमारी स्मरण शक्ति इस बात पर भी निर्भर करती है कि आपने पहले किसी घटना को कितनी रुचि व महत्व दिया है। जब हम किसी व्यक्ति या घटना से आकर्षित होते हैं तो उस पर अधिक ध्यान देते हैं। तब ऐसे व्यक्ति या घटना को याद करना आसान हो जाता है।कंप्यूटर में कोई चिप या सॉफ्टवेयर लगा कर उसकी मैमरी सुधार सकते हैं।मस्तिष्क की संरचना कंप्यूटर से कहीं जटिल है, इसके साथ ऐसा नहीं हो सकता। जिस तरह व्यायाम से शारीरिक क्षमता सुधारी जा सकती है, उसी तरह मस्तिष्क व स्मरण शक्ति में भी सुधार लाया जा सकता है। शरीर की तरह मस्तिष्क की फिटनेस भी महत्व रखती है। अच्छी स्मरण शक्ति हमें मानसिक रूप से सजग रखती है।
       
       वैज्ञानिकों का दावा है कि मानव मस्तिष्क वृद्धावस्था में भी परिवर्तन के अनुसार समायोजित होने की अद्भुत क्षमता रखता है। इस योग्यता को ‘न्यूरोप्लास्टीसिटी’ कहते हैं। उचित उत्तेजना से यह नए ‘न्यूरल पाथवे’ बना सकता है, मौजूदा स्नायु में बदलाव लाया जा सकता है तथा नए तौर-तरीकों के हिसाब से समायोजन कर, प्रतिक्रिया दे सकता है।

 स्मरण के प्रकार

अब प्रश्न यह उठता है कि स्मरण के विभिन्न प्रक्रमों की क्रियाविधि क्या है? इस परिभाषा के अनुसार स्मृति के तीन मुख्य संग्रह होते हैं।

 1)संवेदी स्तर स्मृति

           हमारी ज्ञानेन्द्रियां(संवेदी अंग) किसी भी सूचना को वातावरण से ग्रहण करके उसे मस्तिष्क तक पहुंचाने का कार्य करती हैं। बाद मे उस सूचना के आधार पर मस्तिष्क द्वारा एक निष्कर्ष निकाला जाता है। हम देखने, सुनने या त्वचा द्वारा शीत या गर्मी की अनुभूति का उदाहरण ले सकते हैं। कोई भी वातावरणीय उद्दीपन जैसे प्रकाश या ध्वनि सबसे पहले अपने संबंधित ज्ञानेन्द्रिय मे बहुत ही कम समय के लिए कूटबद्ध रूप में संग्रहित होता है। यह संग्रहण अत्यल्प समय के लिए होता है। दृष्टि के लिए इसकी सीमा 0.5 सेकेंड और श्रवण के लिए इसकी समय सीमा 2 सेकेंड के आसपास होती है। इस समय सीमा के पश्चात इस संग्रहित स्मृति का क्षय हो जाता है। ऐंद्रिक स्तर पर सूचनाएं अभी प्रारंभिक होती हैं और इनसे कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते। इनका मस्तिष्क द्वारा संयोजन तथा परिमार्जन अभी बाकी होता है।

   2)अल्पकालीन स्मृति

         ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त सूचनाएं जब हमारे ध्यान में आती हैं तो वे अल्पकालीन स्मृति का भाग बनती हैं। यहां उल्लेखनीय है कि संवेदी स्तर की वे सभी सूचनाएं जिन पर हम ध्यान नहीं देते वे समाप्त हो जाती हैं। केवल वहीं सूचनाएं जिन पर हम एकाग्र होते है वे अल्पकालीन स्मृतियां बनती हैं। अल्पकालीन स्मृति को क्रियात्मक स्मृति भी कहा जाता है। इस प्रकार की स्मृति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमारे द्वारा कोई फोन नंबर याद करना है। जब हम किसी नंबर को देख कर उसे डायल करते हैं तो दो बाते होती हैं। सबसे पहले हम नबर को देखते हैं और उसे कुछ एक बार दोहरा के याद करते हैं फिर नंबर डायल करने के बाद सामान्यतः उसे भूल जाते हैं। अतः इस प्रकार की स्मृति के संबंध में दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। प्रथम, अल्पकालीन स्मृति की क्षमता बहुत कम होती है (सामान्यतः इसका मान 7±2 होता है, अर्थात् हम 5 से 9 अंको तक की कोई संख्या आसानी से याद कर सकते हैं। यदि हमें 14 अंको की कोई संख्या याद करनी हो तो इसे दो के जोड़े में बदल कर याद करते हैं।) द्वितीय, इस प्रकार की स्मृति में अगर एकाग्रता में थोड़ी भी कमी से हमारा ध्यान बंट जाए तो स्मृति शेष नहीं रह जाती। फोन वाले उदाहरण में अगर नंबर याद करने और डायल करने के बीच में कोई दूसरी बात हो जाए तो हमें नंबर याद नहीं रहेगा। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इस प्रकार की स्मृति में सूचना का कुल संग्रहण 20 से 30 सेकेंड तक ही होता है। लेकिन अगर सूचना को दोहराया जाए तो यह समय 20 से 30 सेकेंड से अधिक भी हो सकता है। और अगर बार-बार ध्यान से दोहराएं तो यह सूचना दीर्घकालीन स्मृति में परिवर्तित हो जाती है।

   3)दीर्घकालीन स्मृति

          जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है दीर्घकालीन स्मृतियां स्थाई होती हैं। हम इस स्मृति का उपयोग बहुत तरीको से करते हैं। आज सुबह हमने नाश्ते में क्या खाया? परसों हमारे घर कौन-कौन मिलने आया था? उन लोगों ने कौन से कपड़े पहन रखे थे? हमने अपना पिछला जन्मदिन कहां और कैसे मनाया था? हम साइकिल कैसे चला लेते हैं से लेकर वर्ग पहेली हल करने तक, इन सारी गतिविधियों में हमारी यह स्मृति हमारा साथ देती है। इस प्रकार की स्मृति सबसे अधिक विविध होती है और हमारी भावनाओं, अनुभवों तथा ज्ञान इत्यादि इन सभी रूपो में परिलक्षित होती है। अल्पकालीन स्मृति की सूचनाएं बार-बार दुहराई जाने के बाद दीर्घकालीन स्मृति बन जाती हैं। इस स्मृति का क्षय नहीं होता लेकिन इसमें परिवर्तन हो सकता है।

 स्मरण संबधी अनियमितताएं और इसके कारण

       हम सभी ने किसी न किसी समय ऐसी स्थिति का सामना किया होगा जब हम अपनी यादाश्त को याद करते हैं। उदाहरण के लिए हम कुछ कहने जा रहे हों और अचानक ही भूल गए कि क्या कहना है या परीक्षा में प्रश्नपत्र के सारे उत्तर आ रहे हों लेकिन उनको लिखने के लिए शब्द नहीं मिल पा रहे हैं। यह स्मृति लोप के छोटे-छोटे उदाहरण हैं। दूसरी ओर आपने देखा होगा कि वृद्धावस्था में कुछ लोगों को भूलने की शिकायत होने लगती है। आइन्सटाइन के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि एक बार वे अपने विश्वविद्यालय में टहल रहे थे तभी उनके एक विद्यार्थी ने उन्हें दोपहर के भोजन के लिए पूछा। आइन्सटाइन ने उससे पूछा कि जब आपने मुझे रोका तब मैं किस दिशा की ओर से आ रहा था? विद्यार्थी ने एक ओर इशारा कर के बताया कि आप उस दिशा की ओर से आ रहे थे। तब आइन्सटीन ने उत्तर दिया। धन्यवाद! तब तो मैने भोजन कर लिया है। ऐसी बहुत सी कथाएं दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के संबंध में कही जाती हैं। यह छोटे स्तर पर हुए स्मृति लोप का एक उदाहरण है। उपरोक्त सभी घटनाओं में हम देखते हैं कि कहीं न कहीं से हमारे मस्तिष्क की सुगम क्रियाशीलता में रुकावट हो रही होती है। थोड़ी बहुत मात्रा में स्मृति संबंधी दोष तो लगभग सभी में होता है लेकिन इसे रोग का नाम नहीं दिया जा सकता। जब इन लक्षणों के कारण व्यक्ति औरउससे जुड़े लोग प्रभावित होने लगे तभी इसे स्मृतिभ्रंश का नाम देते हैं। इस प्रकार के रोगी केवल आधे घंटे पहले मिले लोगों को याद नहीं रख पाते। उन्हे यह भी याद नहीं रहता कि दस मिनट पहले उन्होने स्नान किया था। जीवन की सामान्य क्रियाएं बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित होने लगती हैं। स्मृति लोप या स्मृति भ्रंश (Amnesia), स्मृति संबंधी एक ऐसी घटना है जिसमें इससे संबंधित किसी भी प्रक्रम जैसे स्मरण या संग्रहण में बाधा उत्पन्न हो जाती है और जिसके फलस्वरूप हमारी सामान्य स्मृति प्रभावित होती है। यह बाधा किसी भी शारीरिक या मनोवैज्ञानिक कारणों जैसे मस्तिष्क की चोट या किसी अन्य कारण से हुई क्षति, बिमारी, पोषक तत्वों की कमी, सदमें, अत्यधिक शराब के सेवन से, नशीली दवाइयों और अधिक उम्र के कारण हो सकती है। यहां स्मृतिलोप के कुछ मुख्य प्रकारों का वर्णन किया गया है।

   1)कोरसाकॉफ सिंड्रोम (Korsakoff’s Syndrome)

             शराब का अत्याधिक सेवन करने वाले लोगों में इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। शराब से लंबे समय तक अधिक मात्रा में सेवन करने से मुख्यतः दो समस्याएं होती हैं। एक तो थाइमिन विटामिन की खतरनाक स्तर पर कमी हो जाती है और दूसरी , मस्तिष्क में कुछ हानिकारक संरचनात्मक परिवर्तन हो जाते हैं। इनके फलस्वरूप रोगियों कि स्मृति बुरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसा देखा गया है कि इनकी वर्तमानकाल की स्मृति तो ठीक होती है लेकिन बीती घटनाओं को याद नहीं रख पाते और बहुत सी महत्वपूर्ण यादें इनकी स्मृति से पूरी तरह से गायब दिखाई देती हैं।

     2)एंटेरोग्रेड स्मृतिलोप (Anterograde Amnesia)

             इस प्रकार के स्मृति भ्रंश में नई सूचनाएं याद करने में कठिनाई होती है। लेकिन बीती घटनाओं की स्मृतियां बिल्कुल ठीक होती हैं। ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि किसी के मस्तिष्क के किसी खास हिस्से पर चोट लग गई हो और उसके बाद उसे केवल पुरानी बाते याद रह गई हों और दुर्घटना के बाद की किसी नई स्मृति के लिए कोई स्थान ही न बचा हो।

   3)रेट्रोग्रेड स्मृतिलोप (Retrograde Amnesia)

            इसके लक्षणों में पुरानी घटनाएं आश्चर्यजनक रूप से भूल जाती हैं लेकिन नई घटनाओं से संबंधित स्मृतियों में कोई परेशानी नहीं होती। ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि किसी दुर्घटना के बाद पुरानी सारी यादे पता नहीं कहां चली गईं। लेकिन नई सूचनाओं को याद रखने में कोई कठिनाई नहीं हो रही । इस प्रकार के स्मृतिलोप में स्मृति कुछ दिनों में वापस आ जाती है।

     4)अभिप्रेरित विस्मृति (Motivated Forgetting)

       यह देखा गया है कि कभी कभी हमारा मन हमें कुछ विशेष स्मृतियों तो भूलने के लिए भी प्रेरित करता है। और हम उन्हें पूरी तरह से भूल भी जाते हैं। हमारे वर्तमान को सुखद बनाने के लिए प्रकृति द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई है। ऐसा विशेष तौर पर बहुत ही पीड़ादायक स्मृतियों के संदर्भ में होता है। उदाहरण के लिए बाल्यकाल में हुई कोई दुखद घटना, दंड आदि। यहां उल्लेखनीय होगा कि ये स्मृतियां केवल हमारे चेतन मन से लुप्त होती हैं। कहीं गहरे अचेतन में इनके अंश विद्यमान होते हैं।

    स्मरण युक्तियां

           हम अपने आस-पास ऐसे अनेक लोगों को देखते हैं जिनकी स्मृति क्षमता बहुत अच्छी होती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कि अपने भुलक्कड़ स्वभाव के कारण जाने जाते हैं। हम में से सभी सोचते हैं कि हमारी यादाश्त क्षमता बढ जाए तो कितना अच्छा हो। एक अच्छी यादाश्त का मुख्य लक्षण है कि यह सभी संबंधित बातों को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करे और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत ही इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करे। कुछ ऐसी दवाइयां उपलब्ध हैं जिनसे गंभीर रूप से भूलने की स्थिति में सहायता मिलती है। लेकिन इन दवाइयों का प्रयोग विशेष स्थितियों में ही करना चाहिए। हम कितनी अच्छी तरह से याद करते और सीखते हैं यह काफी कुछ हमारे भावनात्मक स्थिति पर निर्भर करता है। सीखने और समझने के लिए प्रेरणादायक वातावरण हमेशा ही लाभप्रद होता है। हम तब भी बेहतर तरीके से सीख पाते हैं जब हम ध्यान देते हैं। यह भी आवश्यक है कि सूचना को किस प्रकार कोड किया जा रहा है। इसका भंडारण और समेकन (storage and integration) किस प्रकार हो रहा है और इसका पुनः स्मरण (retrieval) कैसे हो रहा है। एक अच्छी स्मृति के लिए इन सारी क्रियाओं का सुचारु रूप से होना आवश्यक है।

Monday, April 7, 2014

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7 Habits जो बना सकती हैं आपको Super Successful

     7 Habits of Highly Effective People


     7 Habits जो बना सकतीं हैं आपको  Super Successful

      आपकी ज़िन्दगी बस यूँ ही नहीं घट जाती. चाहे आप जानते हों या नहीं , ये आपही के द्वारा डिजाईन की जाती है. आखिरकार आप ही अपने विकल्प चुनते हैं. आप खुशियाँ चुनते हैं . आप दुःख चुनते हैं.आप निश्चितता चुनते हैं. आप अपनी अनिश्चितता चुनते हैं.आप अपनी सफलता चुनते हैं. आप अपनी असफलता चुनते हैं.आप साहस चुनते हैं.आप डर चुनते हैं.इतना याद रखिये कि हर एक क्षण, हर एक परिस्थिति आपको एक नया विकल्प देती है.और ऐसे में आपके पास हमेशा ये opportunity होती है कि आप चीजों को अलग तेरीके से करें और अपने लिए और positive result produce  करें.

Habit 1 : Be Proactive / प्रोएक्टिव बनिए

            Proactive  होने का मतलब है कि अपनी life के लिए खुद ज़िम्मेदार बनना. आप हर चीज केलिए अपने parents  या  grandparents  को नही blame कर सकते . Proactive  लोग इस बात को समझते हैं कि वो “response-able” हैं . वो अपने आचरण के लिए जेनेटिक्स , परिस्थितियों, या परिवेष को दोष नहीं देते हैं.उन्हें पता होताहै कि वो अपना व्यवहार खुद चुनते हैं. वहीँ दूसरी तरफ जो लोग reactive  होते हैं वो ज्यादातर अपने भौतिक वातावरण से प्रभावितहोते हैं. वो अपने behaviour  के लिए बाहरी चीजों को दोष देते हैं. अगर मौसम अच्छा है, तोउन्हें अच्छा लगता है.और अगर नहीं है तो यह उनके attitude और  performance  को प्रभावित करता है, और वो मौसम को दोष देते हैं. सभी बाहरी ताकतें एक उत्तेजना  की तरह काम करती हैं , जिन पर हम react करते हैं. इसी उत्तेजना और आप उसपर जो प्रतिक्रिया करते हैं के बीच में आपकी सबसे बड़ी ताकत छिपी होती है- और वो होती है इस बात कि स्वतंत्रता कि आप  अपनी प्रतिक्रिया का चयन स्वयम कर सकते हैं. एक बेहद महत्त्वपूर्ण चीज होती है कि आप इस बात का चुनाव कर सकते हैं कि आप क्या बोलते हैं.आप जो भाषा प्रयोग करते हैं वो इस बात को indicate  करती है कि आप खुद को कैसे देखते हैं.एक proactive व्यक्ति proactive भाषा का प्रयोग करता है.–मैं कर सकता हूँ, मैं करूँगा, etc. एक reactive  व्यक्ति reactive  भाषा का प्रयोग करता है- मैं नहीं कर सकता, काश अगर ऐसा होता , etc. Reactive  लोग  सोचते हैं कि वो जो कहते और करते हैं उसके लिए वो खुद जिम्मेदार नहीं हैं-उनके पास कोई विकल्प नहीं है.
ऐसी परिस्थितियां जिन पर बिलकुल भी नहीं या थोड़ा-बहुत control किया जा सकता है , उसपर react या चिंता करने के बजाये proactive  लोग अपना time  और  energy  ऐसी चीजों में लगाते हैं जिनको वो  control  कर सकें. हमारे सामने जो भी समस्याएं ,चुनतिया या अवसर होते हैं उन्हें हम दो क्षेत्रों में बाँट सकते हैं:


1)Circle of Concern ( चिंता का क्षेत्र )


2)Circle of Influence. (प्रभाव का क्षेत्र )

         Proactive  लोग अपना प्रयत्न Circle of Influence पर केन्द्रित करते हैं.वो ऐसी चीजों पर काम करते हैं जिनके बारे में वो कुछ कर सकते हैं: स्वास्थ्य , बच्चे , कार्य क्षेत्र कि समस्याएं. Reactive  लोग अपना प्रयत्न Circle of Concern पर केन्द्रित करते हैं: देश पर ऋण , आतंकवाद, मौसम. इसबात कि जानकारी होना कि हम अपनी energy किन चीजों में खर्च करते हैं, Proactive  बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है

Habit 2: Begin with the End in Mind  अंत को ध्यान में रख कर शुरुआत करें. 

        तो , आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं? शायद यह सवाल थोड़ा अटपटा लगे,लेकिन आप इसके बारे में एक क्षण के लिए सोचिये. क्या आप अभी वो हैं जो आप बनना चाहते थे, जिसका सपना आपने देखा था, क्या आप वो कर रहे हैं जो आप हमेशा से करना चाहते थे. इमानदारी से सोचिये. कई बार ऐसा होता है कि लोग खुद को ऐसी जीत हांसिल करते हुए देखते हैं जो दरअसल खोखली होती हैं–ऐसी सफलता, जिसके बदले में उससे कहीं बड़ी चीजों को  गवाना पड़ा. यदि आपकी सीढ़ी सही दीवार पर नहीं लगी है तो आप जो भी कदम उठाते हैं वो आपको गलत जगह पर लेकर जाता है.

           Habit 2  आपके imagination या  कल्पना  पर आधारित है– imagination , यानि आपकी वो क्षमता जो आपको अपने दिमाग में उन चीजों को दिखा सके जो आप अभी अपनी आँखों से नहीं देख सकते. यह इस सिधांत पर आधारित है कि हर एक चीज का निर्माण दो बार होता है. पहला mental creation, और दूसरा physical creation. जिस  तरह blue-print तैयार होने केबाद मकान बनता है , उसी प्रकार mental  creation  होने के बाद ही physical creation होती है.अगर आप खुद  visualize  नहीं करते हैं कि आप क्या हैं और क्या बनना चाहते हैं तो आप, आपकी life कैसी होगी इस बात का फैसला औरों पर और परिस्थितियों पर छोड़ देते हैं. Habit 2  इस बारे में है कि आप किस तरह से अपनी विशेषता को पहचानते हैं,और फिर अपनी personal, moral और  ethical  guidelines के अन्दर खुद को खुश रख सकते और पूर्ण कर सकते हैं.अंत को ध्यान में रख कर आरम्भ करने का अर्थ है, हर दिन ,काम या project  की शुरआत एक clear vision  के साथ करना कि हमारी क्या दिशा और क्या मंजिल होनी चाहिए, और फिर proactively  उस काम को पूर्ण करने में लग जाना.
          Habit 2  को practice मेंलाने का सबसे अच्छा तरीका है कि अपना खुद का एक Personal Mission Statement बनाना. इसका फोकस इस बात पर होगा कि आप क्या बनना चाहते हैं और क्या करना चाहते हैं.ये success के लिए की गयी आपकी planning है.ये इस बात की पुष्टिकरता है कि आप कौन हैं,आपके goals को focus  में रखता है, और आपके ideas  को इस दुनिया में लाता है. आपका Mission Statement आपको अपनी ज़िन्दगी का leader बनाता है. आप अपना भाग्य खुद बनाते हैं, और जो सपने आपने देखे हैं उन्हें साकार करते हैं.

Habit 3 : Put First Things First प्राथमिक चीजों को वरीयता दें

          एक balanced life  जीने के लिए, आपको इस बात को समझना होगा कि आप इस ज़िन्दगीमें हर एक चीज नहीं कर सकते. खुद को अपनी क्षमता से अधिक कामो में व्यस्त करने की ज़रुरत नहीं है. जब ज़रूरी हो तो “ना” कहने में मत हिचकिये, और फिर अपनी important priorities पर focus  कीजिये.
Habit 1  कहतीहै कि , ” आप in charge हैं .आप creator हैं”. Proactive होना आपकी अपनी choice है. Habit 2 पहले दिमाग में चीजों को visualize  करने के बारे में है. अंत को ध्यान में रख कर शुरआत करना vision से सम्बंधित है. Habit 3  दूसरी creation , यानि  physical creation  के बारे में है. इस habit में Habit 1 और Habit 2  का समागम होता है. और यह हर समय हर क्षण होता है. यह Time Management  से related कई प्रश्नों को  deal  करता है.

         लेकिन यह सिर्फ इतना ही नहीं है. Habit 3  life management  के बारे में भी है—आपका purpose, values, roles ,और priorities. “प्राथमिक चीजें” क्या हैं?  प्राथमिक चीजें वह हैं , जिसको आप व्यक्तिगत रूप से सबसे मूल्यवान मानते हों. यदि आप प्राथमिक कार्यों को तरजीह देने का मतलब है कि , आप अपना समय , अपनी उर्जा Habit 2  में अपने द्वारा set की गयीं priorities पर लगा रहे हैं.

Habit 4: Think Win-Win  हमेशा जीत के बारे में सोचें

           Think Win-Win अच्छा होने के बारे में नहीं है, ना ही यह कोईshort-cut है. यहcharacter पर आधारित एक कोड है जो आपको बाकी लोगों सेinteract और सहयोग करने के लिए है.
हममे से ज्यादातर लोग अपना मुल्यांकन दूसरों सेcomparison और  competition  के आधार पर करते हैं. हम अपनी सफलता दूसरों की असफलता में देखते हैं—यानि अगर मैं जीता, तो तुम हारे, तुम जीते तो मैं हारा. इस तरह life एकzero-sum game बन जाती है. मानो एक ही रोटी हो, और अगर दूसरा बड़ा हिस्सा ले लेता है तो मुझे कम मिलेगा, और मेरी कोशिश होगी कि दूसरा अधिक ना पाए. हम सभी येgame  खेलते हैं, लेकिन आप ही सोचिये कि इसमें कितना मज़ा है?
            Win -Win ज़िन्दगी कोco-operation की तरह देखती है, competition कीतरह नहीं.Win-Win दिल और दिमाग की ऐसी स्थिति है जो हमेंलगातार सभी काहित सोचने के लिए प्रेरित करती है.Win-Win का अर्थ है ऐसे समझौते और समाधान जो सभी के लिए लाभप्रद और संतोषजनक हैं. इसमें सभी   खाने को मिलती है, और वो काफी अच्छाtaste  करती है.

             एक व्यक्ति या संगठन जोWin-Win attitude  के साथ समस्याओं को हल करने की कोशिश करता है उसके अन्दर तीन मुख्य बातें होती हैं:

               Integrity / वफादारी :अपनेvalues, commitments औरfeelings के साथ समझौता ना करना.
Maturity / परिपक्वता :  अपनेideas औरfeelings  को साहस के साथ दूसरों के सामने रखना और दूसरों के विचारों और भावनाओं की भी कद्र करना.

              Abundance Mentality / प्रचुरता की मानसिकता :इस बात में यकीन रखना की सभी के लिए बहुत कुछ है.
              बहुत लोग either/or  केterms  में सोचते हैं: या तो आप अच्छे हैं या आप सख्त हैं. Win-Win में दोनों की आवश्यकता होती है. यह साहस और सूझबूझ के बीचbalance  करने जैसा है.Win-Win को अपनाने के लिए आपको सिर्फ सहानभूतिपूर्ण ही नहीं बल्कि आत्मविश्वाश से लबरेज़ भी होना होगा.आपको सिर्फ विचारशील और संवेदनशील ही नहीं बल्कि बहादुर भी होना होगा.ऐसा करनाकि -courage और  consideration मेंbalance  स्थापित हो, यहीreal maturity  है, और Win-Win  के लिए बेहद ज़रूरी है.

Habit 5: Seek First to Understand, Then to Be Understood / पहले दूसरों को समझो फिर अपनी बात समझाओ.

              Communication  लाइफ की सबसे ज़रूरी skill  है. आप अपने कई साल पढना-लिखना और बोलना सीखने में लगा देते हैं. लेकिन सुनने का क्या है? आपको ऐसी कौनसी training  मिली है, जो आपको दूसरों को सुनना सीखाती है,ताकि आप सामने वाले को सच-मुच अच्छे से समझ सकें? शायद कोई नहीं? क्यों?
अगर आप ज्यादातर लोगों की तरह हैं तो शायद आप भी पहले खुद आपनी बात समझाना चाहते होंगे. और ऐसा करने में आप दुसरे व्यक्तिको पूरी तरह ignore कर देते होंगे , ऐसा दिखाते होंगे कि आप सुन रहे हैं,पर दरअसल आप बस शब्दों को सुनते हैं परउनके असली मतलब को पूरी तरह से miss  कर जाते हैं.

     सोचिये ऐसा क्यों होता है? क्योंकि ज्यादातर लोग इस intention  के साथ सुनते हैं कि उन्हें reply  करना है, समझना नहीं है.आप अन्दर ही अन्दर खुद को सुनते हैं और तैयारी  करते हैं कि आपको आगे क्या कहना है,क्या सवाल पूछने हैं, etc. आप जो कुछ भी सुनते हैं वो आपके life-experiences  से छनकर आप तक पहुचता है.
         आप जो सुनते हैं उसे अपनी आत्मकथा से तुलना कर देखते हैं कि ये सही है या गलत. और इस वजह से आप दुसरे की बात ख़तम होने से पहले ही अपने मन में एक धारणा बना लेते हैं कि अगला क्या कहना चाहता है.  क्या ये वाक्य कुछ सुने-सुने से लगते है?
         “अरे, मुझे पता है कि तुम कैसा feel  कर रहे हो.मुझे भी ऐसा ही लगा था.” “मेरे साथ भी भी ऐसा ही हुआ था.” ” मैं तुम्हे बताता हूँ कि ऐसे वक़्तमें मैंने क्या किया था.”
        चूँकि आप अपने जीवन के अनुभवों के हिसाब से ही दूसरों को सुनते हैं. आप इन चारों में से किसी एक तरीके से ज़वाब देते हैं:
 
   Evaluating/ मूल्यांकन:पहले आप judge करते हैं उसके बाद सहमत या असहमत होते हैं.
   Probing / जाँच :आप अपने हिसाब से सवाल-जवाब करते हैं.
   Advising/ सलाह :आप सलाह देते हैं और उपाय सुझाते हैं.
   Interpreting/ व्याख्या :आप दूसरों के मकसद और व्यवहार को अपने experience के हिसाब से analyze करते हैं.
     शायदआप सोच रहे हों कि, अपनेexperience के हिसाब से किसी सेrelate करने में बुराई क्याहै?कुछsituations में ऐसा करना उचित हो सकत है, जैसे कि जब कोई आपसे आपके अनुभवों के आधार पर कुछ बतानेके लिए कहे, जब आप दोनों के बीच एकtrust कीrelationship हो. पर हमेशा ऐसा करना उचित नहीं है.

Habit 6: Synergize / ताल-मेल बैठाना

         सरल शब्दों में समझें तो , “दो दिमाग एक से बेहतर हैं ” Synergize करने का अर्थ है रचनात्मक सहयोग देना. यह team-work है. यह खुले दिमाग से पुरानी समस्याओं के नए निदान ढूँढना है.

         पर ये युहीं बस अपने आप ही नहीं हो जाता. यह एक process है , और उसी process से, लोग अपनेexperience और expertise को उपयोग में ला पाते हैं .अकेले की अपेक्षा वो एक साथ कहीं अच्छाresult दे पाते हैं. Synergy से हम एक साथ ऐसा बहुत कुछ खोज पाते हैं जो हमारे अकेले खोजने पर शायद ही कभी मिलता. ये वो idea है जिसमे the whole is greater than the sum of the parts. One plus one equals three, or six, or sixty–या उससे भी ज्यादा.

        जब लोग आपस में इमानदारी से interact करने लगते हैं, और एक दुसरे से प्रभावित होने के लिए खुले होते हैं , तब उन्हें नयी जानकारीयाँ मिलना प्रारम्भ हो जाता है. आपस में मतभेद नए तरीकों के आविष्कार की क्षमता कई गुना बढ़ा देते हैं.

        मतभेदों को महत्त्व देना synergy का मूल है. क्या आप सच-मुच लोगों के बीच जो mental, emotional, और psychological differences होते हैं, उन्हें महत्त्व देते हैं? या फिर आप ये चाहते हैं कि सभी लोग आपकी बात मान जायें ताकि आप आसानी से आगे बढ़ सकें? कई लोग एकरूपता को एकता समझ लेते हैं. आपसी मतभेदों को weakness नहीं strength के रूप में देखना चाहिए. वो हमारे जीवन में उत्साह भरते हैं.

Habit 7: Sharpen the Saw कुल्हाड़ी को तेज करें

        Sharpen the Saw का मतलब है अपने सबसे बड़ी सम्पत्ति यानि खुद को सुरक्षित रखना. इसका अर्थ है अपने लिए एक प्रोग्राम डिजाईन करना जो आपके जीवन के चार क्षेत्रों physical, social/emotional, mental, and spiritual में आपका नवीनीकरण करे. नीचे ऐसी कुछ activities केexample दिए गए हैं:

 Physical / शारीरिक :अच्छा खाना, व्यायाम करना, आराम करना
 Social/Emotional /:सामजिक/भावनात्मक :औरों के ससाथ सामाजिक और अर्थपूर्ण सम्बन्ध बनाना.
 Mental / मानसिक :पढना-लिखना, सीखना , सीखना.
 Spiritual / आध्यात्मिक :प्रकृति के साथ समय बीताना , ध्यान करना, सेवा करना.

        आप जैसे -जैसे हर एक क्षेत्र में खुद को सुधारेंगे, आप अपने जीवन में प्रगति और बदलाव लायेंगे.Sharpen the Saw आपको fresh रखता है ताकि आप बाकी की six habits अच्छे से practice कर सकें. ऐसा करने से आप challenges face करने की अपनी क्षमता को बढ़ा लेते हैं. बिना ऐसा किये आपका शरीर कमजोर पड़ जाता है , मस्तिष्क बुद्धिरहित हो जाता है, भावनाए ठंडी पड़ जाती हैं,स्वाभाव असंवेदनशील हो जाता है,और इंसान स्वार्थी हो जाता है. और यह एक अच्छी तस्वीर नहीं है, क्यों?

        आप अच्छा feel करें , ऐसा अपने आप नहीं होता. एक balanced life जीने काअर्थ है खुद कोrenew करने के लिए ज़रूरी वक़्त निकालना.ये सब आपके ऊपरहै .आप खुद को आराम करकेrenew कर सकते हैं. या हर काम अत्यधिक करके खुद को जला सकते हैं . आप खुद को mentallyऔर spiritually प्यार कर सकते हैं , या फिर अपने well-being से बेखबर यूँ ही अपनी ज़िन्दगी बिता सकते हैं.आप अपने अन्दर जीवंत उर्जा का अनुभव कर सकते हैं या फिर टाल-मटोल कर अच्छे स्वास्थ्य और व्यायाम के फायदों को खो सकते हैं.

        आप खुद को पुनर्जीवित कर सकते हैं और एक नए दिन का स्वागत शांति और सद्भावके साथ कर सकते हैं.या फिर आप उदासी के साथ उठकर दिन को गुजरते देख सकतेहैं. बस इतना याद रखिये कि हर दिन आपको खुद को renew करने का एक नया अवसरदेता है, अवसर देता है खुद को recharge करने का. बस ज़रुरत है Desire (इच्छा),Knowledge( ज्ञान)और Skills(कौशल) की.


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Note:हिंदी में अनुवादकरने में सावधानी बरतने के बावजूद कुछ त्रुटियाँ हो सकती हैं. कृपया क्षमा करें.

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Self-confidence बढाने के 10 तरीके


इस  बात  से  कोई  इनकार  नहीं  कर  सकता की  जीवन  में  सफलता  पाने  के  लिए  self-confidence एक  बेहद  important quality है . जीवन  में  किसी मुकाम  पर  पहुंच  चुके  हर  एक  व्यक्ति  में  आपको    ये quality दिख  जाएगी , फिर  चाहे  वो  कोई  film-star हो  , कोई  cricketer, आपके  पड़ोस  का  कोई  व्यक्ति , या  आपको  पढ़ाने  वाला  शिक्षक  . आत्मविश्वास एक  ऐसा गुण है जो हर  किसी  में होता है , किसी  में  कम  तो किसी  में  ज्यादा . पर  ज़रुरत  इस बात की है  कि  अपने  present level of confidence को  बढ़ा  कर  एक  नए  और  बेहतर  level तक  ले  जाया  जाये . और  आज   AKC पर  मैं  आपके  साथ  कुछ  ऐसी  ही  बातें  share करूँगा  जो  आपके  आत्म-विश्वास  को बढाने में मददगार  हो  सकती हैं :

1)  Dressing sense improve कीजिये :

          आप  किस  तरह  से  dress-up होते  हैं  इसका  असर  आपके  confidence पर  पड़ता  है . ये  बता  दूँ  कि  यहाँ  मैं  अपने  जैसे आम लोगों  की  बात  कर  रहा  हूँ , Swami Vivekanand और  Mahatma Gandhi जैसे  महापुरुषों  का  इससे  कोई  लेना  देना  नहीं  है , और  यदि  आप  इस  category में  आते  हैं  तो  आपका  भी

 मैंने  खुद  इस  बात  को  feel किया  है  , जब  मैं  अपनी  best attire में  होता  हूँ  तो  automatically मेरा  confidence बढ़  जाता  है , इसीलिए  जब  कभी  कोई  presentation या  interview होता  है  तो  मैं  बहुत  अच्छे  से  तैयार  होता  हूँ . दरअसल  अच्छा  दिखना  आपको  लोगों  को  face करने  का  confidence देता  है  और  उसके  उलट  poorly dress up होने  पे  आप  बहुत conscious रहते  हैं .

मैंने  कहीं  एक  line पढ़ी  थी  ,” आप  कपड़ों  पे  जितना  खर्च  करते  हैं  उतना  ही  करें , लेकिन  जितनी  कपडे  खरीदते  हैं  उसके  आधे  ही खरीदें ” . आप भी इसे अपना सकते हैं.

2)  वो  करिए   जो  confident लोग  करते  हैं :

आपके  आस -पास  ऐसे  लोग  ज़रूर  दिखेंगे  जिन्हें  देखकर  आपको  लगता  होगा  कि  ये व्यक्ति  बहुत  confident है . आप  ऐसे  लोगों  को  ध्यान  से  देखिये  और  उनकी  कुछ  activities को  अपनी  life में  include करिए . For example:

•             Front seat पर  बैठिये .

•             Class में , seminars में , और  अन्य  मौके  पर  Questions पूछिए / Answers दीजिये

•             अपने चलने और बैठने के ढंग पर ध्यान दीजिये

•             दबी  हुई  आवाज़  में  मत  बोलिए .

•             Eye contact कीजिये , नज़रे  मत  चुराइए .

3)  किसी  एक   चीज  में  अधिकतर  लोगों  से  बेहतर   बनिए :

हर  कोई  हर  field में  expert नहीं  बन सकता  है , लेकिन  वो  अपने  interest के  हिसाब  से  एक -दो  areas चुन  सकता  है  जिसमे  वो  औरों  से  बेहतर  बन  सकता  है . जब  मैं   School में  था  तो  बहुत  से  students मुझसे  पढाई  और  अन्य  चीजों  में  अच्छे  थे , पर  मैं  Geometry  में  class में  सबसे  अच्छा  था (thanks to Papa :)), और  इसी  वजह  से  मैं  बहुत  confident feel करता  था .  और  आज  मैं  AKC को  world’s most read Hindi Blog बना  कर  confident feel करता  हूँ . अगर  आप  किसी  एक  चीज  में  महारथ  हांसिल  कर  लेंगे  तो  वो  आपको  in-general confident बना  देगा . बस  आपको  अपने  interest के  हिसाब  से  कोई  चीज  चुननी  होगी  और  उसमे  अपने  circle में  best बनना  होगा , आपका  circle आप पर  depend करता  है , वो  आपका  school,college, आपकी  colony या  आपका  शहर  हो  सकता  है .

आप  कोई  भी  field चुन  सकते  हैं  , वो कोई  art हो  सकती  है , music, dancing,etc कोई  खेल  हो  सकता  है , कोई  subject हो  सकता  है  या  कुछ  और जिसमे आपकी expertise  आपको  भीड़  से  अलग  कर  सके  और आपकी  एक  special जगह  बना  सके . ये  इतना  मुश्किल  नहीं  है , आप  already किसी  ना  किसी  चीज  में  बहुतों  से  बेहतर  होंगे , बस  थोडा  और  मेहनत  कर  के  उसमे  expert बन  जाइये , इसमें  थोडा  वक़्त   तो  लगेगा ,  लेकिन  जब  आप  ये  कर  लेंगे  तो  सभी  आपकी  respect करेंगे  और  आप  कहीं  अधिक  confident feel करेंगे .

और  जो  व्यक्ति  किसी  क्षेत्र  में  special बन  जाता है  उसे  और  क्षेत्रों  में  कम   knowledge होने की चिंता  नहीं होती , आप  ही  सोचिये  क्या  कभी सचिन  तेंदुलकर इस  बात  से  परेशान  होते  होंगे  कि  उन्होंने  ज्यादा  पढाई  नहीं  की ….कभी  नहीं !

 4)  अपने  achievements  को  याद  करिए  :

आपकी  past achievements आपको  confident feel करने  में  help करेंगी . ये  छोटी -बड़ी  कोई  भी  achievements हो  सकती  हैं . For example: आप  कभी  class में  first आये  हों , किसी  subject में school top किया  हो , singing completion या  sports में  कोई  जीत  हांसिल  की हो ,  कोई  बड़ा  target achieve किया  हो , employee of the month रहे  हों . कोई  भी  ऐसी  चीज  जो  आपको  अच्छा  feel कराये .

आप  इन  achievements को dairy में  लिख  सकते  हैं , और  इन्हें  कभी  भी  देख  सकते  हैं , ख़ास  तौर  पे  तब  जब  आप  अपना  confidence boost करना  चाहते  हैं .इससे  भी  अच्छा  तरीका  है  कि  आप  इन  achievements से  related कुछ  images अपने  दिमाग  में  बना  लें  और  उन्हें  जोड़कर  एक  छोटी  सी  movie बना  लें  और  समय  समय  पर  इस  अपने  दिमाग  में  play करते  रहे . Definitely ये  आपके  confidence को  boost करने  में मदद  करेगा .

5) Visualize करिए  कि  आप  confident हैं :

आपकी  प्रबल  सोच  हकीकतबनने  का  रास्ता  खोज  लेती  है , इसलिए  आप  हर  रोज़  खुद  को  एक   confident person के  रूप  में  सोचिये . आप  कोई  भी  कल्पना  कर  सकते  हैं , जैसे  कि  आप  किसी  stage पर  खड़े  होकर  हजारों  लोगों  के  सामने  कोई  भाषण  दे  रहे  हैं , या  किसी  seminar haal में  कोई  शानदार  presentation दे  रहे  हैं , और  सभी  लोग  आपसे  काफी  प्रभावित  हैं , आपकी  हर  तरफ  तारीफ  हो  रही  है  और  लोग  तालियाँ  बजा  कर  आपका  अभिवादन  कर  रहे  हैं . Albert Einstein ने  भी  imagination को  knowledge से अधिक  powerful बताया  है ; और  आप  इस  power का  use कर  के  बड़े  से  बड़ा  काम  कर  सकते  हैं .

6) गलतियाँ   करने  से  मत  डरिये:

क्या  आप  ऐसे  किसी  व्यक्ति  को  जानते  हो  जिसने  कभी  गलती  ना  की  हो ? नहीं  जानते  होंगे , क्योंकि  गलतियाँ  करना  मनुष्य  का  स्वभाव  है , और  मैं  कहूँगा  कि  जन्मसिद्ध  अधिकार  भी . आप  अपने  इस  अधिकार  का  प्रयोग  करिए . गलती  करना  गलत  नहीं  है ,उसे  दोहराना  गलत  है . जब  तक  आप  एक  ही  गलती  बार -बार  नहीं  दोहराते  तब  तक  दरअसल  आप  गलती  करते  ही  नहीं  आप  तो  एक  प्रयास  करते  हैं  और  इससे  होने  वाले  experience से  कुछ  ना  कुछ  सीखते  हैं .

दोस्तों  कई  बार  हमारे  अन्दर  वो  सब  कुछ  होता  है  जो  हमें  किसी काम  को  करने  के  लिए  होना  चाहिए , पर  फिर  भी  failure के डर से  हम  confidently उस  काम  को  नहीं  कर  पाते .  आप  गलतियों  के  डर  से  डरिये  मत , डरना  तो उन्हें चाहिए जिनमे इस भय के कारण  प्रयास  करने  की  भी  हिम्मत  ना  हो !! आप  जितने  भी  सफल  लोगों  का  इतिहास  उठा  कर  देख  लीजिये  उनकी  सफलता  की  चका-चौंध  में  बहुत  सारी  असफलताएं  भी  छुपी  होंगी .

Michel Jordan, जो  दुनिया  के  अब  तक  के  सर्वश्रेष्ठ basketball player माने   जाते  हैं; उनका  कहना  भी  है  कि  , “मैं अपनी जिंदगी में बार-बार असफल हुआ हूँ और इसीलिए मैं सफल होता हूँ.”

आप  कुछ   करने  से  हिचकिचाइए  मत  चाहे  वो  खड़े  हो  कर कोई सवाल करना हो , या  फिर  कई  लोगों  के  सामने  अपनी  बात   रखनी  हो , आपकी  जरा  सी  हिम्मत  आपके  आत्मविश्वास  को  कई  गुना  बढ़ा  सकती  है . सचमुच डर के आगे जीत है!

7)  Low confidence के  लिए  अंग्रेजी  ना  जानने  का  excuse मत  दीजिये :

हमारे  देश  में  अंग्रेजी  का वर्चस्व  है . मैं  भी  अंग्रेजी  का ज्ञान  आवश्यक  मानता  हूँ ,पर  सिर्फ  इसलिए  क्योंकि  इसके  ज्ञान  से  आप  कई  अच्छी  पुस्तकें , ब्लॉग  , etc पढ़  सकते  हैं , आप  एक  से  बढ़कर  एक  programs, movies, इत्यादि  देख  सकते  हैं . पर  क्या  इस  भाषा  का  ज्ञान  confident होने  के  लिए  आवश्यक  है , नहीं .  English जानना  आपको  और  भी  confident बना  सकता  है  पर  ये  confident होने  के  लिए  ज़रूरी  नहीं  है . किसी  भी  भाषा  का  मकसद  शब्दों  में  अपने  विचारों   को  व्यक्त   करना  होता  है , और  अगर  आप  यही  काम  किसी  और  भाषा  में  कर  सकते  हैं  तो आपके लिए अंग्रेजी  जानने  की  बाध्यता  नहीं  है .

मैं  गोरखपुर  से  हूँ , वहां  के  संसद   योगी  आदित्य  नाथ  को  मैंने  कभी  अंग्रेजी में  बोलते  नहीं  सुना  है , पर  उनके  जैसा  आत्मविश्वास  से  लबरेज़  नेता  भी  कम   ही  देखा  है . इसी  तरह  मायावती , और  मुलायम  सिंह  जैसे  नेताओं में  आत्मविश्वास  कूट -कूट  कर  भरा  है  पर  वो  हमेशा  हिंदी  भाषा का  ही  प्रयोग  करते  हैं . दोस्तों, कुछ  जगहों  पर  जैसे  कि job-interview में  अंग्रेजी  का  ज्ञान  आपके  चयन  के  लिए  ज़रूरी  हो  सकता  है , पर  confidence के  लिए  नहीं , आप  बिना  English जाने  भी  दुनिया  के  सबसे  confident  व्यक्ति  बन  सकते  हैं .

8 ) जो  चीज  आपका आत्मविश्वास  घटाती  हो  उसे  बार-बार  कीजिये :

कुछ  लोग  किसी  ख़ास  वजह  से  confident नहीं  feel करते  हैं . जैसे  कि  कुछ  लोगों में  stage-fear होता  है  तो  कोई  opposite sex के  सामने  nervous हो  जाता  है . यदि  आप  भी  ऐसे  किसी  challenge को  face कर  रहे  हैं  तो  इसे beat करिए . और  beat करने  का  सबसे  अच्छा  तरीका  है  कि  जो  activity आपको  nervous करती  है  उसे  इतनी  बार  कीजिये  कि  वो  आप ताकत  बन  जाये . यकीन  जानिए  आपके  इस  प्रयास  को  भले  ही शुरू  में  कुछ  लोग  lightly लें  और  शायद  मज़ाक  भी  उडाएं  पर  जब  आप  लगातार अपने efforts  में लगे  रहेंगे  तो  वही  लोग  एक  दिन  आपके  लिए  खड़े  होकर  ताली  बजायेंगे .

 गाँधी जी की कही एक  line मुझे  हमेशा  से  बहुत  प्रेरित  करती  रही  है  “पहले वो आप पर ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हँसेंगे, फिर वो आप से लड़ेंगे, और तब आप जीत जायेंगे.”  तो  आप  भी  उन्हें  ignore करने  दीजिये , हंसने  दीजिये ,लड़ने  दीजिये ,पर  अंत  में आप  जीत जाइये . क्योंकि  आप  जीतने  के  लिए  ही  यहाँ  हैं , हारने  के  लिए  नहीं .

9) विशेष  मौकों  पर  विशेष  तैयारी  कीजिये :

“सफलता  के  लिए  आत्म-विश्वास  आवश्यक  है, और आत्म-विश्वास   लिए तैयारी”-Arthur Ashe

जब  कभी  आपके  सामने  खुद  को   prove करने  का  मौका  हो  तो  उसका  पूरा  फायदा  उठाइए . For example: आप  किसी  debate,quiz, dancing या  singing competition में  हिस्सा  ले  रहे  हों , कोई  test या  exam दे  रहे  हो ,या  आप  कोई  presentation दे  रहे  हों , या  कोई  program organize कर  रहे  हों . ऐसे  हर एक  मौके  के  लिए  जी -जान   से  जुट  जाइये  और  बस  ये  ensure करिए  कि  आपने  तैयारी  में  कोई  कमी  नहीं  रखी , अब  result चाहे जो भी  हो  पर  कोई  आपकी  preparation को  लेकर  आप  पर  ऊँगली  ना  उठा  पाए.

Preparation और  self-confidence directly proportional हैं . जितनी  अच्छी  तैयारी  होगी  उतना  अच्छा  आत्म -विश्वास  होगा .और  जब  इस  तैयारी  की  वजह  से  आप  सफल  होंगे  तो  ये  जीत  आपके life की success story में  एक  और  chapter बन  जाएगी  जिसे  आप  बार -बार  पलट  के  पढ़  सकते  हैं  और  अपना  confidence boost कर  सकते  हैं .

10)Daily अपना  MIT पूरा  कीजिये :

कुछ  दिन  पहले  मैंने  AKC पर  MIT यानि  Most Important Task के  बारे  में  लिखा  था , यदि  आपने  इसे  नहीं  पढ़ा  है  तो  ज़रूर  पढ़िए . यदि  आप  अपना  daily का  MIT पूरा  करते  रहेंगे  तो   निश्चित  रूप  से  आपका  आत्म -विश्वास  कुछ  ही  दिनों  में  बढ़  जायेगा . आप  जब  भी  अपना  MIT पूरा  करें  तो  उसे  एक  छोटे  success के  रूप  में देखें  और  खुद  को  इस  काम  के  लिए  शाबाशी  दें .रोज़  रोज़  लगातार  अपने  important tasks को  successfully पूरा  करते  रहना  शायद  अपने  confidence को  boost करने का सबसे  कारगर  तरीका  है .  आप इसे ज़रूर try कीजिये.

Friends, ये  याद  रखिये  कि  आपका  confidence आपकी  education, आपकी financial condition या आपके looks पर नहीं depend करता और आपकी इज़ाज़त के बिना कोई भी आपको inferior नहीं feel करा सकता. आपका आत्म-विश्वास आपकी सफलता के लिए बेहद आवश्यक है,और आजआपका confidence चाहे जिस level हो, अपने efforts से आप उसे नयी ऊँचाइयों तक पहुंचा सकते हैं.

All the best!

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कैसे बनाएं अपना दिन productive?

Hi Friends,

         अपनी productivity बढाने  के  लिए  मैंने  आपके  साथ  दो  simple tools share किये  थे : To Do List and Time Management Matrix. यदि  आपने  इसका  use  किया  होगा  तो  आपको  ज़रूर  फायदा  हुआ   होगा . और अगर आप उसकी आदत ना भी डाल पाएं हों तो कोई बात नहीं क्योंकि आज  आपके साथ मैं जो productivity technique share कर रहा हूँ वो इतनी simple है कि आप बिना किसी extra effort के इसका use कर सकते हैं.

इस  technique का नाम है MIT :  Most Important Task  यानि सबसे ज़रूरी काम

इसके  बारे  में   मैंने  Zen Habits में  पढ़ा  था .

 तो आइये जानते हैं कि हम कैसे MIT का use करके अपना day productive बना सकते हैं:

 इस तरीके में आपको सबसे पहले खुद  से  एक  प्रश्न करना  है  :

 “ मेरा  आज  का  सबसे  ज़रूरी  काम  क्या  है ?”

और आप जैसे ही इस question का answer जान  लें  तो  आपको  इसी  को  अपना आज का लक्ष्य बना  लेना  है .  अब  आपको निश्चय करना  है कि कुछ  भी  हो  जाए  आप  आज ये  काम  केरेंगे  ही  करेंगे , ये  आपका  खुद   से  किया गया  commitment है .

Friends, शायद आपने भी experience किया होगा कि  जब  हमारे  सामने  बहुत  सारे  काम  होते  हैं  तो  कई  बार  ऐसा  होता  है  कि  हम   कुछ  काम  तो  निपटा  लेते  हैं  पर  कोई  ऐसा  काम  जो  और  सबसे  अधिक  ज़रूरी  था  वो  रह  जाता  है . पर  जब  आप किसी दिन का  MIT decide कर  लेते  हैं  तो   आपका  focus उस  एक  most important task पर  हो  जाता है  , और  आप  अन्य less important tasks को  side में  रख  पाते हैं.

अपने  MIT को   जितना  जल्दी  हो  सके  उतना  जल्दी  निपटाने  की   कोशिश  कीजिये , सबसे  अच्छा  तो  होगा  की  आप  अगले  दिन  के  MIT के  बारे  में  रात  में  ही  सोच  लें  और  अगले  दिन  उठने  के  बाद  जितना  जल्दी  हो  सके  इस  काम  को  ख़त्म  करने  की  कोशिश  करें  . काम  complete होने  पर  आप  बहुत  relax हो  जायेंगे आपको लगेगा की आपने  वो  achieve कर  लिया  है जिसे पूरा करने का आपने निश्चय किया था. और अब  आप  बचे  हुए  कामों  को  prioritize कर  के  निपटा  सकते  हैं .

ये  ज़रूरी  नहीं  की  MIT कोई  बहुत  hi-fi काम  हो , ये  छोटा  से  छोटा  और   बड़ा  से  बड़ा  काम  हो  सकता  है , बस  ख़ास  बात  ये  है  की  उस  particular day पर  यही  आपका  सबसे  ज़रूरी  काम  होगा .जैसे कि किसी  के  लिए  कोई  college assignment complete करना  MIT हो  सकता  है  तो  किसी  के  लिए  शादी  का  card बांटना  MIT हो  सकता  है , तो  किसी  और  के  लिए  sales presentation बनाना  MIT हो  सकता  है!!

अगर मैं अपने आज के MIT की बात  करूँ तो हो सकता है ये आपको बहुत ही साधारण काम लगे पर सच बताऊँ तो इसे कर के मैं बहुत ही relaxed और अच्छा  feel कर रहा हूँ. :)  दरअसल मैं  पिछले  कई  दिनों  से  अपने  scooty का  engine oil change कराने  की  सोच  रहा  था ….पर  किसी  ना  किसी  वजह  से  ये  काम  रह  जाता  था …पर  मैंने  इसे  आज  अपना  MIT बनाया …और  office जाते  वक़्त ही  इसे  complete किया . अगर  मैं  इसे  MIT नहीं  बनाता  तो  और  दिनों  की  तरह  आज  भी  मैं  यही  सोचता  कि  चलो …ऑफिस से लौटते  वक़्त या  कल  ये  काम  करा  लेंगे …और  फिर  वो  काम  रह  जाता .

Actually जब  आप  किसी  काम  को  MIT बनाते  हैं  तो  आपके  पास  उस  काम   को  करने  के  लिए अलग  से  एक  energy और  motivation मिल  जाता  है  और   task complete हो  जाता  है .

जब  आप  कई  दिनों  तक  लगातार  अपने  MIT complete कर  लेंगे  तो  आपको  इसकी  आदत  पड़ जाएगी , और  फिर  आप  MIT को  थोडा  modify करके  MITs ( Most Important Tasks) कर  सकते  हैं , यानी  अब  आपको खुद को stretch करना है और  किसी  particular day पर  एक  से  अधिक  काम  complete करने  हैं .

To begin with आप  अपने  लिए  कोई  दो  काम  चुनिए , ये  भी  ध्यान  रखिये  की  आपकी  MITs की  list manageable हो  , यदि  आप  दस  कामों  को  MITs list में  डाल  देंगे  तो  शायद  ये  पूरी  exercise बेकार चली  जाये …मेरे  हिसाब  से  आप  maximum 3 कामों  को  ही  MITs में  रखिये .और   इन  तीन  tasks में  से  कम  से  कम  एक  task ऐसा  होना  चाहिए  जो  आपके LONG TERM GOALS को  fulfil करने  में  helpful हो . ऐसा  करने  से  आप  daily अपने  goal की  तरफ  बढ़ते   रहेंगे   और  at the end of the day satisfied feel करेंगे .

So, give it a try. All the best!

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Pleasant Personality Develop करने के 10 Tips

        

            हम रोज़ाना बहुत से लोगों से मिलते हैं पर कुछ -एक लोग ही ऐसे होते हैं जो हमें प्रभावित कर जाते हैं . ऐसे लोगों के लिए ही हम कहते हैं कि the person has got a pleasant personality. ऐसी personality वाले लोग अक्सर खुशहाल होते हैं और उनकी हर जगह respect होती है , उन्हें like किया जाता है , parties में invite किया जाता है और job में इन्हें promotion भी जल्दी मिलता है . Naturally, हम सभी ऐसी personality possess करना चाहेंगे और आज मैं अपने इस article में ऐसे ही 10 points share कर रहा हूँ जो आपको एक आकर्षक व्यक्तित्व पाने में help कर सकते हैं . 

1. लोगों को genuinely like करिए :

         जब हम किसी से मिलते हैं तो मन में उस person की एक image बना लेते हैं . ये image positive, negative या neutral हो सकती है . पर अगर हम अपनी personality improve करना चाहते हैं तो हमें इस image को intentionally positive बनाना होगा . हमें अपने mind को train करना होगा कि वो लोगों में अच्छाई खोजे बुराई नहीं . ये करना इतना मुश्किल नहीं है , अगर आप mind को अच्छाई खोजने के लिए निर्देश देंगे तो वो खोज निकालेगा .
          
            हमें लोगों के साथ patient होना चाहिए, उनकी किसी कमी या shortcoming से irritate होने की बजाये खुद को उनकी जगह रख कर देखना चाहिए. क्या पता अगर हम भी उन्ही जैसे circumstnaces में पले-बढे होते तो उन जैसे ही होते!!! इसलिए differences को सेलिब्रेट करिए उनसे irritate मत होइये.

         Friends, हमारे चारो -तरफ फैली negativity हमें बहुत प्रभावित करती है , हम रोज़ चोरी , धोखा -धडी , fraud की खबरें सुनते हैं और शायद इसी वजह से आदमी का आदमी पर से विश्वास उठता जा रहा है . मैं ये नहीं कहता की आप आँख -मूँद कर लोगों पर trust करिए , पर ये ज़रूर कहूँगा कि आँख -मूँद कर लोगों पर distrust मत करिए . ज्यादातर लोग अच्छे होते हैं ; कम से कम उनके साथ तो होते ही हैं जो उनके साथ अच्छा होता है , आप लोगों के साथ अच्छा बनिए , उन्हें like करिए और बदले में वे भी आपके साथ ऐसा ही करेंगे .
      Ralph Waldo Emerson ने कहा भी है , “मैं जिस व्यक्ति से भी मिलता हूँ वह किसी ना किसी रूप में मुझसे बेहतर है.”
        
      तो जब हर कोई हमसे किसी न किसी रूप में बेहतर है तो उसे like तो किया ही जा सकता है!

2. मुसकुराहट के साथ मिलिए :

        जब आप अपने best friend से मिलते हैं तो क्या होता है ? आप एक दूसरे को देखकर smile करते हैं , isn’t it ?

       मुस्कराना जाहिर करता है कि आप सामने वाले को पसंद करते हैं . यही बात हर तरह की relations में लागू होती है ; इसलिए आप जब भी किसी से मिलें ( of course कुछ exceptions हैं ) तो चहरे पर एक genuine smile लाइए , इससे लोग आपको पसंद करेंगे , आपसे मिलकर खुश होंगे .आपकी मुस्कराहट के जवाब में मुस्कराहट न मिले ऐसा कम ही होगा , और होता भी है तो let it be आपको अपना part अच्छे से play करना है बस .
      
      ये सुनने में काफी आसान लग रहा होगा , करना ही क्या है , बस हल्का सा smile ही तो करना है , बहुत से log naturally ऐसा करते भी हैं ; पर बहुत से लोग इस छोटी सी बात पर गौर नहीं करते , और अगर आप भी नहीं करते तो इसे अपनी practice में लाइए . एक मुस्कुराता चेहरा एक flat या stern face से कहीं अधिक आकर्षक होता है , और आपकी personality को attractive बनाने में बहुत मददगार होता है .

       मुस्कुराने से एक और फायदा भी है , as per some research; जब हम अन्दर से खुश होते हैं तो हमारे एक्सटर्नल expressions उसी हिसाब से change हो जाते हैं , हमें देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि हम खुश हैं ; और ठीक इसका उल्टा भी सही है , यानि जब हम अपने बाहरी expressions खुशनुमा बना लेते हैं तो उसका असर हमारे internal mood पर भी पड़ता है और वो अच्छा हो जाता है .

       So, don’t forget to carry a sweet smile wherever you go.

     3. नाम रहे ध्यान :

     किसी व्यक्ति के लिए उसका नाम दुनिया के बाकी सभी नामों से ज्यादा importance रखता है . इसिलए जब आप किसी से बात करें तो बीच -बीच में उसका नाम लेते रहिये . Of course अगर व्यक्ति आपसे senior है तो आपको नाम के साथ ज़रूरी suffix या prefix लगाना होगा .
     
    बीच -बीच में नाम लेने से सामने वाला अपनी importance feel करता है और साथ ही आपकी तरफ ध्यान भी अधिक देता है . And definitely वो इस बात से खुश होता है कि आप उसके नाम को importance दे रहे हैं .

      Friends, नाम याद रखने में मैं भी थोडा कच्चा था , यहाँ तक कि कई बार नाम जानने के 2 minute बाद ही वो ध्यान से उतर जाता था . ऐसा basically इसलिए होता था क्योंकि मैं नाम याद रखने की कोशिश ही नहीं करता था ; पर अब मैं intentionally एक बार नाम सुनने के बाद उसे याद रखने की कोशिश करता हूँ . आप भी “नाम की महत्ता को समझिये ” , नाम याद रखना आपको एक बहुत बड़ी edge दे देता है .
  4. “I” से पहले “You” को रखिये:

    आप किसे अधिक पसंद करेंगे : जो अपने मतलब की बात करे या उसे जो आपके मतलब की बात करे ?

    Of course आप दूसरा option choose करेंगे …हर एक इंसान पहले खुद को रखने में लगा हुआ है …मैं ऐसा हूँ , मुझे ये अच्छा लगता है , मैं ये करता हूँ ….isn’t it . पर आप इससे अलग करिए आप “I” से पहले “You” को रखिये .
   
     आप कैसे हैं “, आपको क्या अच्छा लगता है ? , आप क्या करते हैं , ?

     सिर्फ actors, cricketers, या writers ही नहीं एक आम आदमी भी audience चाहता है …जब आप एक आम आदमी के audience बनते हैं तो आप उसके लिए ख़ास हो जाते हैं . और जब आप बहुत से लोगों के साथ ऐसा करते हैं तो आप बहुत से लोगों के लिए ख़ास हो जाते हैं and in the process आप एक Person से बढ़कर एक Personality बन जाते हैं , एक ऐसी personality जिसे सभी पसंद करते हैं , जिसका charisma सभी को influence कर जाता है .
   
    5. बोलने से पहले सुनिए:

       इसे आप पॉइंट 4 का extension कह सकते हैं . जब आप दूसरे में interest लेते हैं तो इसमें इमानदारी होनी चाहिए . आपने “ आप क्या पसंद करते हैं ?” इसलिए नहीं पूछा कि बस वो जल्दी से अपना जवाब ख़तम करे और आप अपनी राम -कथा सुनाने लग जाएं .

      आपको सामने वाले को सिर्फ पहले बोलने का मौका ही नहीं देना है , बल्कि उसकी बात को ध्यान से सुनना भी है और बीच -बीच में उससे related और भी बातें करनी हैं . For ex: अगर कोई कहता है कि उसे घूमने का शौक है , तो आप उससे पूछ सकते हैं कि उसकी favourite tourist destination क्या है , और वहां पर कौन -कौन सी जगह अच्छी हैं .
     
       अच्छे listeners की demand कभी कम नहीं होती आप एक अच्छा listener बनिए और देखिये कि किस तरह आपकी demand बढ़ जाती है .

  6. क्या कहते हैं से भी ज़रूरी है कैसे कहते हैं :

    आप जो बोलते हैं उससे भी अधिक महत्त्व रखता है कि आप कैसे बोलते हैं . For ex. आपसे कोई गलती हुई और आप मुंह बना कर sorry बोलते हैं तो उस sorry का कोई मतलब नहीं . हमें न सिर्फ सही words use करने हैं बल्कि उन्हें किस तरह से कहा जा रहा है इस बात का भी ध्यान रखना है .

       इसलिए आप अपनी tone और body language पे ध्यान दीजिये , जितना हो सके polite और well-mannered तरीके से लोगों से बात करिए .

       यहाँ मैं ये भी कहना चाहूँगा कि बहुत से लोग English बोलने की ability को Personality से relate कर के देखते हैं , जबकि ऐसा नहीं है , आप बिना A,B,C जाने भी एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले इंसान बन सकते हैं 

    7. बिना अपना फायदा सोचे लोगों की help करिए :

    कई बार हम ऐसी स्थिति में होते हैं कि दूसरों की help कर सकें , पर out of laziness या फिर ये सोचकर कि इसमें हमारा कोई फायदा नहीं है हम help नहीं करते . पर एक pleasant personality वाला व्यक्ति लोगों की help के लिए तैयार रहता है . हाँ , इसका ये मतलब नहीं है कि आप अपने ज़रूरी काम छोड़ कर बस लोगों की help ही करते रहे , लेकिन अगर थोडा वक़्त देने पर आप किसी के काम आ सकते हैं तो ज़रूर आएं . आपकी एक selfless help आपको दूसरों की ही नहीं अपनी नज़रों में भी उठा देगी और आप अच्छा feel करेंगे .
      
        आपने सुना भी होगा ; “A little bit of fragrance always clings to the hands that gives you roses”

   8. अपने external appearance को अच्छा बनाइये :

    चूँकि हमारा पहला impression हमारी appearance की वजह से ही बनता है इसलिए इस point पर थोडा ध्यान देने की ज़रुरत है .

     Appearance से मेरा ये मतलब नहीं है कि आप Gym जाने लगिए और body बनाइये , या फिर beauty –parlour के चक्कर लगाते रहिये , it simply means कि आप occasion के हिसाब से dress-up होइये और personal hygiene पर ध्यान द्जिये . छोटी –छोटी बातें जैसे कि आपका hair-cut , nails औरpolished shoe आपकी personality पर प्रभाव डालते हैं .
    
  9. क्या appreciate कर सकते हैं खोजिये :
    
    चाहे मैं हूँ , आप हों , या फिर Mr. Bachchan , तारीफ सुनना सबको पसंद है . लोगों का दिल जीतने का और अपना friend बनाने का ये एक शानदार formula है …प्रशंशा कीजिये , सच्ची प्रशंशा कीजिये .

      India में ना जाने क्यों किसी की तारीफ़ करना इतना कठिन हो जाता है … शादियों में जो ऑर्केस्ट्रा होती है उसमे ज़रूर गए होंगे ….बेचारा गायक एक शानदार गीत गाता है है और तालियाँ बजाने की बजाये लोग एक -दूसरे के चेहरे देखने लगते हैं …; अच्छा हुआ मैं orchestra में नहीं गाता नहीं तो ऐसी audience की वजह से depression में चला जाता . :)

      खैर , मैं यहाँ individual level पे praise करने की बात कर रहा हूँ . अगर आप खोजेंगे तो हर इंसान में आपको तारीफ करने के लिए कुछ न कुछ दिख जाएगा ….वो कुछ भी हो सकता है …उसका garden,coins का collection, बढियां से सजाया कमरा , उसकी smile, उसका नाम , कुछ भी , खोजिये तो सही आपको दिख ही जायेगा . और जब दिख जाए तो दब्बू बन कर मत बैठे रहिये , किसी की तारीफ़ करके आप उसे वो देंगे जो वो दिल से चाहता है …आप उसकी ख़ुशी को बढ़ा देंगे , उसका दिन बना देंगे , और सबसे बड़ी चीज आप उसे वो काम आगे भी carry करने के लिए fuel दे देंगे . अगर सामने बोलने से हिचकते हैं तो बाद में एक sms कर दीजिये , मेल से बता दीजिये , पर अगर कुछ praiseworthy है तो उसे praise ज़रूर करिए .

       हाँ अगर बहुत कोशिश करने पर भी वो ना मिले तो don’t try to fake it…बच्चे भी समझ जाते हैं कि आप सच्ची तारीफ कर रहे हैं या झूठी 

 10. लगातार observe और improve करते रहिये :

    Personality development एक on-going process है . हम सब में improvement का infinite scope है , इसलिए कभी ये मत समझिये कि बस अब जिंतना improvement होना था हो गया , बल्कि अपने लिए कुछ समय निकाल कर अपनी activities, अपने words को minutely observe करिए , आपने क्या किया , आप उसे और अच्छा कैसे कर सकते हैं , कहीं ऐसा तो नहीं कि आप किसी चीज को लेकर खुद को तीस-मारखां समझ रहे हैं और हकीकत में लोग आपकी इस बात को पसंद नहीं करते .
For ex. कुछ साल पहले मैंने realize किया कि लोगों में जल्दी improvement लाने के चक्कर में मैं इतने अधिक mistakes point out कर देता कि उनका confidence कम हो जाता ; so I improved on this point और अब मैं patiently ये काम करता हूँ .आप भी इस रास्ते पर बढ़ते हुए खुद को observe करते चलिए , और लगातार improve करते जाइये .

      I hope ये 10 बातें आपको अपनी personality pleasant बनाने में help करेंगी .

अब क्या करना है ?

       अब आपको इन दस बातों की बारी-बारी से प्रैक्टिस करनी है. To start with आप अपनी पसंद का कोई एक point choose कर लें , ध्यान रहे कि एक बार में सिर्फ और सिर्फ एक point पर ही focus करना है . Choose करने के बाद इसे real life में apply करें . अपनी day-today activities में खुद पर नज़र रखें और देखें कि आप सचमुच उसे apply कर पा रहे हैं या नहीं . जब एक हफ्ते ऐसा कर लें तो दूसरे point को उठाएं और अब उसकी practice करें . इस दौरान आप पहले point को भी apply करते रहे , पर अगर वो miss भी हो जाता है to don’t worry फिलहाल आपका focus point 2 है , और वो नहीं miss होना चाहिए 

   इसी तरह से आप बाकी points की भी practice करते रहिये , और कुछ ही महीनो में आप पाएंगे कि एक साथ सारी बातों पर ध्यान दे पा रहे हैं . Just be patient and keep on moving , and surely आप जल्द ही एक pleasant personality के मालिक होंगे .

   All the best!

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