यहोवा परमेश्वर ने इंसान के दिमाग में याद रखने की बेजोड़ काबिलीयत डाली है। हमारा दिमाग एक ऐसे भंडार की तरह बनाया गया है जिसके अंदर से आप जब चाहे, जितना चाहे ज्ञान का अनमोल खज़ाना निकाल सकते हैं, तो भी यह कभी खत्म नहीं होगा। हमारे दिमाग की रचना दिखाती है कि परमेश्वर ने इंसानों को हमेशा ज़िंदा रहने के लिए बनाया था।
लेकिन आप शायद सोचें कि मैं इतना कुछ सुनता और सीखता हूँ, मगर आधी से ज़्यादा बातें दिमाग से गुल हो जाती हैं और ऐन वक्त पर याद ही नहीं आतीं। तो फिर, अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
दिलचस्पी लीजिए
दिलचस्पी लेना, अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिए एक ज़रूरी कदम है। अगर हम हमेशा अपने आँख-कान खुले रखने की आदत डालते हैं, साथ ही लोगों और आस-पास हो रही घटनाओं में दिलचस्पी लेते हैं, तो हमारा दिमाग तेज़ी से सोचने लगता है। इस आदत की वजह से हम उन बातों को भी शौक से पढ़ेंगे और सुनेंगे, जो हमारी ज़िंदगी के लिए अनमोल साबित हो सकती हैं।
अकसर देखा गया है कि लोगों को दूसरों के नाम याद नहीं रहते। लेकिन हम मसीहियों के लिए, लोग बहुत मायने रखते हैं, फिर चाहे वे हमारे मसीही भाई-बहन हों, या वे जिन्हें हम गवाही देते हैं, या वे जिनके साथ हमारा रोज़ का लेना-देना है। तो फिर हमें जिनका नाम याद होना चाहिए, उनका नाम याद रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं? गौर कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने एक कलीसिया को लिखी अपनी पत्री में 26 भाई-बहनों के नाम लिखे थे। उसे सिर्फ उनके नाम याद नहीं थे बल्कि उसने उनकी कुछ खास बातों का भी ज़िक्र किया। इससे पता चलता है कि पौलुस को उनमें सच्ची दिलचस्पी थी। (रोमि. 16:3-16) आज यहोवा के साक्षियों के सफरी ओवरसियर, हर हफ्ते अलग-अलग कलीसियाओं के ढेरों लोगों से मिलते हैं, फिर भी उनमें से कुछ सफरी ओवरसियरों को भाई-बहनों के नाम बहुत अच्छी तरह याद हो जाते हैं। कैसे? दरअसल जब वे किसी से पहली बार मिलते हैं, तब वे कई दफा उसका नाम लेकर उससे बात करते हैं। वे लोगों के चेहरे से उनका नाम याद रखने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, वे दूसरे मौकों पर अलग-अलग भाई-बहनों के संग वक्तब बिताते हैं जैसे कि प्रचार के दौरान या उनके यहाँ खाने पर। अगली बार जब आपकी मुलाकात किसी से होगी, तब क्या आपको उसका नाम याद रहेगा? सबसे पहले, ऐसी खास बात सोचने की कोशिश कीजिए जिसकी वजह से आप उसका नाम याद रख सकें; फिर ऊपर बताए गए कुछ सुझावों को आज़माएँ।
नाम याद रखने के अलावा, जो कुछ आप पढ़ते हैं उसे भी याद रखना ज़रूरी है। इस मामले में अपनी याददाश्त तेज़ करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? इसके दो तरीके हैं: पहला, मन लगाकर पढ़िए और दूसरा, जो कुछ आप पढ़ते हैं, उसे समझने की कोशिश कीजिए। जब आप कुछ पढ़ते हैं, तो आपको उसमें गहरी दिलचस्पी लेनी चाहिए, तभी आप उस पर पूरा ध्यान दे पाएँगे। लेकिन पढ़ते वक्त अगर आपका दिमाग कहीं और है, तो आपको कुछ भी याद नहीं रहेगा। नयी जानकारी का पहले सीखी बातों के साथ मेल बिठाने से या उनके बीच का फर्क समझने से आप जो पढ़ रहे हैं, उसे और भी अच्छी तरह समझ पाएँगे। खुद से सवाल कीजिए: ‘मैं कब और कैसे इस जानकारी को अपनी ज़िंदगी में अमल में ला सकता हूँ? इस जानकारी का इस्तेमाल करके मैं दूसरों की कैसे मदद कर सकता हूँ?’ इसके अलावा, अपनी समझ बढ़ाने के लिए अलग-अलग शब्दों के बजाय वाक्य के पूरे-पूरे हिस्सों को पढ़ना सीखिए। इस तरह आप जो पढ़ रहे हैं, उसका मतलब आपको ज़्यादा आसानी से समझ आएगा और आप यह भी जान पाएँगे कि इसमें किन खास विचारों के बारे में चर्चा की जा रही है। इससे याद रखना भी आसान हो जाएगा।
सीखी हुई बातों को दोहराने के लिए वक्त निकालिए
शिक्षा क्षेत्र के महारथियों ने ज़ोर देकर कहा है कि याददाश्त बढ़ाने में, सीखी हुई बातों को दोहराना, हमेशा से एक कारगर तरीका रहा है। एक अध्ययन किया गया था जिसमें कॉलेज के एक प्रोफेसर ने परीक्षण करके दिखाया कि पढ़ने के फौरन बाद, सीखी हुई बातों को दोहराने के लिए सिर्फ एक मिनट बिताने से आप पहले के मुकाबले दो गुना ज़्यादा जानकारी याद रख पाते हैं। इसलिए पढ़ाई के फौरन बाद या उसके बीच में, मुख्य मुद्दों को मन-ही-मन दोहराइए ताकि ये आपके दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाएँ। अगर आप कोई नयी बात सीखते हैं, तो मन में विचार कीजिए कि आप इसे अपने शब्दों में दूसरों को किस तरह समझाएँगे। जब कोई विचार पढ़ने के फौरन बाद आप उसे मन में दोहराते हैं, तो यह आपको काफी समय तक याद रहता है।
यह तरकीब आज़माने के अगले कुछ दिनों के दौरान, कोशिश कीजिए कि आपने जो कुछ सीखा है, उस पर किसी-न-किसी के साथ चर्चा करें। आप चाहें तो घर के किसी सदस्य, कलीसिया के किसी भाई-बहन, अपने साथी कर्मचारी, स्कूल के दोस्त, पड़ोसी या प्रचार करते वक्तई किसी से इन बातों पर चर्चा कर सकते हैं। आपने जो खास सच्चाइयाँ सीखी हैं, सिर्फ उन्हीं के बारे में मत बताइए बल्कि यह भी बताइए कि इनको मानने के लिए शास्त्र में क्या तर्क दिया गया है। ऐसा करना आपके लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे आप ज़रूरी बातों को याद रख पाएँगे और इससे दूसरों को भी लाभ होगा।
अहम बातों पर मनन कीजिए
आप जो कुछ पढ़ते हैं, उसे दोहराने और दूसरों के साथ चर्चा करने के अलावा, आपको सीखी हुई ज़रूरी बातों पर मनन भी करना चाहिए। आप पाएँगे कि ऐसा करना और भी फायदेमंद है। बाइबल लेखक, आसाप और दाऊद ने ऐसा ही किया था। आसाप ने कहा: “मैं याह के कामों को स्मरण करूँगा, निश्चय, मैं प्राचीनकाल के तेरे अद्भुत कार्यों को स्मरण करूंगा। जो कुछ तू ने किया है मैं उस पर ध्यान करूंगा। और तेरे कार्यों पर मनन करूंगा।” (भज. 77:11,12, NHT) और दाऊद ने लिखा: “रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूंगा” और “मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, मैं तेरे सब अद्भुत कामों पर ध्यान करता हूं।” (भज. 63:6; 143:5) क्या आप भी ऐसा करते हैं?
जब आप यहोवा के कामों, उसके गुणों और उसकी मरज़ी क्या है, इस बारे में गहराई से सोचेंगे, तब आप न सिर्फ सच्चाई के ज्ञान को दिमागी तौर पर याद रखेंगे बल्कि आपको इससे भी बढ़कर फायदे होंगे। अगर आप मनन करने की ऐसी आदत डाल लेंगे, तो जो बातें बेहद ज़रूरी हैं वे आपके दिल में उतर जाएँगी। ये आपके अंदर के इंसान को ढालकर खरा बनाएँगी। इस तरह मनन करने के बाद आपको जो याद रह जाएगा, वह दिखाएगा कि आपके अंदर का इंसान किस तरह सोचता है।—भज. 119:16.
परमेश्वर की आत्मा की भूमिका
यहोवा के महाकर्मों और यीशु की कही बातों को याद करने के लिए हमें एक और मदद हासिल है। यीशु ने अपनी मौत से पहले की रात को शिष्यों को इस मदद के बारे में बताते हुए कहा: “ये बातें मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कहीं। परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।” (यूह. 14:25,26) उन शिष्यों में मत्ती और यूहन्ना भी मौजूद थे। क्या पवित्र आत्मा वाकई उनके लिए एक सहायक साबित हुई? जी हाँ! इस घटना के करीब आठ साल बाद, मत्ती ने पहली ऐसी किताब लिखकर पूरी की जिसमें मसीह के जीवन की ब्योरेवार जानकारी दी गयी थी। इसके अलावा, इस किताब में उसने पहाड़ी उपदेश जैसी अनमोल यादें लिखीं। इतना ही नहीं, उसने मसीह की उपस्थिति और जगत के अंत के चिन्ह का ब्योरा लिखा। फिर, यीशु की मौत के पैंसठ साल बाद प्रेरित यूहन्ना ने सुसमाचार की अपनी किताब लिखी। यीशु ने अपनी जान कुरबान करने से पहले की रात, अपने प्रेरितों के साथ जो-जो बातें कीं, वे सब यूहन्ना ने अपनी किताब में दर्ज़ कीं। यह सच है कि मत्ती और यूहन्ना ने यीशु के साथ रहते हुए जो कुछ सुना और देखा था, उसकी यादें उनके मन में ताज़ा थीं। मगर जब उन्होंने सुसमाचार की किताबें लिखीं, तो पवित्र आत्मा ने उनकी मदद की और उन्हें वह हर ज़रूरी बात याद दिलायी जो यहोवा अपने वचन में लिखवाना चाहता था। इस तरह पवित्र आत्मा ने एक अहम भूमिका निभाई।
क्या आज भी पवित्र आत्मा परमेश्वर के लोगों के लिए सहायक का काम कर रही है? बेशक! हालाँकि पवित्र आत्मा हमारे मन में वे बातें नहीं डाल देती जो हमने कभी सीखीं ही नहीं। मगर फिर भी, यह एक सहायक बनकर हमें वे अहम बातें याद दिलाती है जो हमने पहले कभी पढ़ी थीं। (लूका 11:13; 1 यूह. 5:14) फिर ज़रूरत की घड़ी में, यह हमारी याददाश्त पर असर डालती है और हमारा दिमाग तेज़ी से दौड़ने लगता है और हम ‘उन बातों को, जो पवित्र भविष्यद्वक्ताओं ने पहिले से कही हैं और प्रभु, और उद्धारकर्त्ता की आज्ञा को स्मरण’ कर पाते हैं।—2 पत. 3:1,2.
‘तुम भूल मत जाना’
यहोवा ने इस्राएलियों को बार-बार यह कहकर आगाह किया था: ‘तुम भूल मत जाना।’ यहोवा उनसे यह उम्मीद नहीं कर रहा था कि उन्हें हर छोटी-से-छोटी बात याद रहे। मगर उन्हें अपने ही कामों में इतना डूब नहीं जाना चाहिए था कि उनके पास यहोवा के महान कामों के बारे में सोचने की ज़रा भी फुरसत न हो। उन्हें अपने दिलो-दिमाग में ये घटनाएँ ताज़ा रखनी थीं कि यहोवा ने उनको छुटकारा दिलाने की खातिर क्या-क्या किया था। कैसे उसने अपना स्वर्गदूत भेजकर मिस्र के सभी पहिलौठों को मार डाला। कैसे उसने लाल समुद्र को चीरकर बीच में से रास्ता निकाल दिया और फिर उसकी जलधाराओं को लौटाकर फिरौन और उसकी सेना को डुबा दिया। इस्राएलियों को यह भी याद रखना था कि परमेश्वर ने उन्हें सीनै पर्वत के पास अपनी व्यवस्था दी और वह उन्हें किस तरह वीराने से वादा किए गए देश में ले आया था। इन्हें ना भूलने का मतलब था कि इस्राएलियों की रोज़मर्रा ज़िंदगी पर इन घटनाओं का हमेशा-हमेशा के लिए ज़बरदस्त असर होना चाहिए था।—व्यव. 4:9,10; 8:10-18; निर्ग. 12:24-27; भज. 136:15.
आज हमें भी एहतियात बरतने की ज़रूरत है कि कहीं हम भी भुल्लकड़ ना हो जाएँ। ज़िंदगी के तनाव का सामना करते-करते हमें यहोवा को नहीं भूल जाना चाहिए। हमें यह बात हमेशा मन में रखनी चाहिए कि वह किस तरह का परमेश्वर है और उसने अपने बेटे को एक तोहफे की तरह देकर हमारे लिए कितना प्यार दिखाया है जिससे हमारे पापों की छुड़ौती मिली और हम हमेशा के लिए सिद्ध जीवन पा सकते हैं। (भज. 103:2,8; 106:7,13; यूह. 3:16; रोमि. 6:23) अगर हम रोज़ बाइबल पढ़ेंगे, कलीसिया की सभाओं और प्रचार में लगातार हिस्सा लेंगे, तो इन अनमोल सच्चाइयों की यादें हमारे मन में हमेशा बनी रहेंगी।
आपको ज़िंदगी में छोटे या बड़े कैसे भी फैसले क्यों ना करने पड़ें, ऐसे में ये अनमोल सच्चाइयाँ याद कीजिए और उनको ध्यान में रखकर फैसला कीजिए। इन्हें भूल मत जाइए। सही राह चुनने के लिए यहोवा से मदद माँगिए। किसी बात को बस इंसान की नज़र से देखने या अपने असिद्ध मन की आवाज़ सुनकर कोई फैसला करने के बजाय खुद से ये सवाल पूछिए: ‘इस मामले में मुझे परमेश्वर के वचन की किस सलाह या सिद्धांत को ध्यान में रखकर फैसला करना चाहिए?’ (नीति. 3:5-7; 28:26) आप ऐसी बातें हरगिज़ याद नहीं कर सकते जो आपने पहले कभी पढ़ी या सुनी न हों। लेकिन, जब यहोवा के बारे में आपका ज्ञान और उसके लिए आपका प्रेम बढ़ेगा, तो आपके ज्ञान का वह भंडार भी बढ़ेगा, जिसमें से पवित्र आत्मा आपको ज़रूरी बातें याद करने में मदद कर सकती है। और यहोवा के लिए प्यार आपको उस जानकारी के मुताबिक काम करने के लिए उकसाएगा।
पढ़ी हुई बातों को याद रखने की काबिलीयत कैसे बढ़ाएँ
• पाठ का एक भाग पढ़ने के बाद, खुद से पूछिए: ‘अभी-अभी मैंने जो पढ़ा, उसका मुख्य मुद्दा क्या है?’ अगर आपको याद नहीं आता, तो उस भाग पर दोबारा नज़र दौड़ाइए और मुख्य मुद्दे को ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए
• पूरा अध्याय या लेख पढ़ने के बाद, अपनी याददाश्त को परखिए। सभी मुख्य मुद्दों को याद कीजिए। अगर आपको ये मुद्दे फौरन याद नहीं आते, तो लेख पर दोबारा नज़र डालिए और जो आपने पढ़ा है, उस पर फिर से गौर कीजिए